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 जीवन का अलौकिक मूल मंत्र है राम....!
अभिवादन में ज्यादा आत्मीय है राम-राम कहना
 
हमारी भारतीय संस्कृति में सदियों से अभिवादन और प्रतियुत्तर का यही तरीका विद्यमान रहा है-
राम-राम दाऊ....
राम-राम....
राम-राम ताऊ...
राम-राम भाई...

जय श्रीराम...
जय-जय श्रीराम...
कितना सहज और अलौकिक आनंद है इस अभिवादन में जो हमारी सांस्कृतिक विरासत का महान प्रतीक रहा है। क्या इस आत्मीय आनंद की अनुभूति ‘गुड मॉर्निंग’, ‘गुड इवनिंग’ या ‘हाय’ जैसे शब्दों के साथ अभिवादन में मिल सकती है? स्वभाविक तौर पर जवाब होगा-कदापि नहीं। राम सदियों से हमारी लोक-संस्कृति में रचे-बसे हैं। राम हमारी एकता, अखण्डता, आस्था और अस्मिता के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक हैं। जय-जय श्रीराम के अलावा अभिवादन के समय राम-राम कहा जाता रहा है और प्रत्युत्तर में भी दो बार राम-राम या कोटि-कोटि राम-राम कहा जाता है। दो व्यक्ति जब मिलने के बाद इस तरह अभिवादन करते हैं तो उनके बीच अधिक स्थायी और आत्मीय संबंध बनते हैं।
राम शब्द सनातन धर्म की पहचान है और जब हम दो बार राम-राम कहते हैं तो 108 बार राम नाम का जाप हो जाता है।  यह अलौकिक रहस्य है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि अंकशास्त्र के दृष्टिकोण से देखें तो हिंदी वर्णमाला में र = 27वां अक्षर है और  27 का योग 2 + 7 = 9 होता है। अंग्रेजी वर्णमाला में राम (RAM) शब्द का पहला अक्षर R 18वें स्थान पर रहता है और उसका योग भी 1 + 8 = 9 होता है। र में 'आ' की मात्रा दूसरा अक्षर और 'म' 25वां अक्षर, सब मिलाकर जो योग बनता है वो है 27 + 2 + 25 = 54, वस्तुतः राम का योग 54 हुआ और दो बार राम राम कहने से 108 हो जाता है जो पूर्ण ब्रह्म का प्रतीक है। कितना वैज्ञानिक और सुखद है राम-राम का अभिवादन और प्रतित्युत्तर में राम–राम कहना।
महान संत कबीर दास जी का बीज मंत्र है राम। कबीर का प्रसिद्ध दोहा है- सहस्र इक्कीस छह सै धागा, निहचल नाकै पोवै। बड़ा गहरा अर्थ और भाव छिपा है इस पंक्ति में जिसका अर्थ है कि मनुष्य 21600 धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है और प्रत्येक श्वास- प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता रहता है। आशय यह है कि हम पूरे दिन के 24 घंटे में 21 हजार 600 बार सांस लेते हैं और हर सांस में राम (अजपा) हैं। अब 21600 का योग भी 9 हो होता है।
 जाहिर है कि सदियों से यह कहा जाता रहा है कि राम का नाम प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है तो इसका भी वैज्ञानिक आधार है। राम विराट ब्रह्म है, राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। महादेव के हृदय में राम सदैव विराजित रहते हैं। वास्तव में राम भारतीय लोक जीवन के कण-कण में समाहित हैं और जो कण-कण में है वह पूरे ब्रह्माण्ड में भी हैं। कहा भी गया है- रमंति इति रामः अर्थात जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है। राम रक्षा स्त्रोत का मंत्र है-
 राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे । 
 सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने।।
भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं कि हे पार्वती मैं भी इन्हीं मनोरम राम में रमता हूँ। यह राम नाम विष्णु के सहस्रनाम के तुल्य है। इसे राम तारक मंत्र भी कहा गया है।
यदि भारतीय मानस के दैनिक जीवन की बात करें तो यहां के लोक-जीवन के कितने ही क्रियाकलापों को भगवान राम की मर्जी पर छोड़कर निश्चिंतता व्यक्त की जाती रही है। जैसी राम की मर्जी... इतना कहने के बाद संकट अथवा दुख के समय का सारा तनाव ही खत्म हो जाता है। तुलसीदासकृत रामचरित मानस के बालकाण्ड के प्रसिद्ध छंद की पंक्ति भी है- होइहि सोइ जो राम रचि राखा। लोक जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक को भगवान राम की मर्जी पर छोड़ने की परंपरा सदियों प्राचीन है।
 22 जनवरी, 2024- राम जन्मभूमि अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का यह दिन देश की सांस्कृतिक-राष्ट्रीय एकता ही नही, वैश्विक-एकता की स्थापना का भी दिन है। पूरे विश्व में पौने दो सौ से भी ज्यादा देश भगवान राम को मानते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के लिए अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका सहित विश्व के तमाम देशों से उपहार आना, ब्रिटेन के संसद में श्रीराम का जयकारा, अमेरिका की सड़कों पर भगवान राम के बिलबोर्ड....अऩेक प्रमाण हैं भगवान राम के रूप में वैश्विक-एकता के प्रतीक के।
विविधताओं से परिपूर्ण भारतीय इतिहास में 500 साल के लम्बे संघर्ष और आहूतियों-बलिदानों के बीच कितनी ही पीढ़ियां बीत गईं, राम आज भी सबके रोम-रोम में बसे हैं। भविष्य में भी सदियों तक राम मंदिर राष्ट्रीय एकता और सनातन आस्था का प्रतीक बनकर भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहेगा। राजनीतिक चश्मे को उतारकर देखें तो हर भारतीय के लिए यह गौरव का अद्भुत प्रतीक है। भारत सहित विश्व के अऩेक देशों में प्रज्जवलित रामज्योति की जगमगाहट ने पारंपरिक दीपोत्सव से भी ब़ड़े दीपोत्सव के आगाज की नई लोक संस्कृति की स्थापना कर दी है। अब रामज्योति के रूप में भी दीपोत्सव मनाया जाएगा जो हमारी सांस्कृतिक एकता का प्रतीक होगा। प्रभु श्री राम सदैव हम सभी के जीवन को प्रगति के पथ पर अग्रसर करें और वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय बीज मंत्र को साकार कर पूरे विश्व को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करें, यही कामना है।
 जय श्री राम...रामलला के प्राण प्रतिष्ठा और रामज्योति महोत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...
लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया  , वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद्

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