मिट्टी की खुशबू
-लघुकथा
- स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
काम माँगने आये उस लड़के को देखकर संदीप को अपना गाँव, अपना बचपन और उनसे जुड़ी हर वो बात याद आ गई थी जो जीवन की आपाधापी में वे भुला बैठे थे। साधारण से कपड़े और चेहरे में मासूमियत , वह बातचीत में भी सीधा सा लगा था ...संदीप ने तुरंत उसे काम पर रख लिया था। वह भी तो एक दिन ऐसे ही चला आया था गाँव से.. काम तलाशने। एक अदद डिग्री , निश्छल मन और परिश्रम करने की जिजीविषा बस यही साथ लेकर निकला था घर से। किसी ने उसके भीतर अपने आप को ढूँढा था और उसे मौका दिया। अब उसकी बारी है ...शायद माली दिन भर के सूखे पौधों में पानी दे रहा था... मिट्टी की सोंधी महक उसके तन - मन को सुवासित कर गई थी।
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