पापा ...... मैं आपकी परछाई हूँ
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
खेला बचपन , सींचा यौवन,
यादों के कितने दर्पण।
घर की हर दीवार पर छाप है मेरी ,
हर कोने में समाई हूँ ।
पापा मैं आपकी परछाई हूँ।।
पालन-पोषण और दुलार,
मर्यादा का दृढ़ आधार।
नियम-संयम,आचार-विचार,
आपने दिए जो सुसंस्कार।
अपनाया है उन्हें, नहीं भुलाई हूँ ।।
पापा मैं आपकी परछाई हूँ।।
मेरी सफलता मेरी जीत,
सब आपको समर्पित।
आपसे है मेरा अस्तित्व,
सँवरा निखरा व्यक्तित्व ।
सुविचार,सदव्यवहार सब,
आपसे ही पाई हूँ।।
पापा मै आपकी परछाई हूँ।।
पौधा कितना ही बढ जाए,
जड़ से दूर रह न पाए।
अलग रहकर जुड़ी हूँ ,
साथ आपके खड़ी हूँ ।
महसूस किया आपका दर्द
सदैव आपकी नही पराई हूँ
पापा मै आपकी परछाई हूँi .
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