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कमरा नंबर 220

-कहानी
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे,  दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)

बरसों बाद आज जयपुर में महेश से मिलकर  शिखर का मन फिर अतीत के गलियारों में  भटकने चला गया था । इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उसका चयन एन. आई टी . भोपाल में हुआ था। एक तो पहली बार घर छोड़कर बाहर आने की झिझक ,ऊपर से रैगिंग का डर दोनों वजहों ने उसकी हालत खराब कर दी थी ।डरते-डरते सामान सहित कॉलेज हॉस्टल पहुँचा  , पापा जी छोड़ने आये थे ..उनके साथ होने से थोड़ा ठीक लग रहा था  पर उसका कमरा अलॉट होने के बाद वे घर चले गये  । प्रथम वर्ष के तीन लड़कों को एक  कमरे में रहना था , सबकी हालत एक जैसी थी इसलिए जल्दी ही उसके कई मित्र बन गये ।
            बॉयज हॉस्टल में रैगिंग की मनाही थी , पर सीनियर्स का दबदबा रहता था ।  वार्डन पुरोहित सर बड़े कठोर मिजाज और अनुशासन प्रिय थे  और नियम तोड़ने पर सख्त दण्ड भी देते थे ।  उनकी पीठ पीछे  सीनियर भी अपने नियम - कानून बताया करते थे लेकिन पढ़ाई में उनका सहयोग भी मिलता था । उनकी किताबें , नोट्स आदि की मदद भी उन्हें खूब मिलती थी । हॉस्टल का एक कमरा किसी को अलॉट नहीं किया गया था , वहाँ रहते - रहते मालूम हुआ कि वह कमरा हॉन्टेड होने के कारण किसी को नहीं दिया जाता । बहुत पहले वहाँ रहने वाले एक लड़के  मोहित ने खुदकुशी कर ली थी । उसके बाद जितने लोगों को वह कमरा मिला , उन लोगों ने भी खुदकुशी कर ली । सबको यह यकीन हो गया था कि वहाँ कुछ न कुछ अदृश्य शक्ति है जिसकी वजह से लड़के मर रहे हैं ।
        शिखर और उसके दोस्त रात को ही पढ़ते थे क्योंकि दिन में कक्षा लगने के कारण सेल्फ स्टडी के लिए समय नहीं मिल पाता था । वे देर रात तक पढ़ते और सुबह दस - ग्यारह बजे तक सोते रहते । वह रात बहुत ही भयावह थी । बारिश का मौसम था । बादलों की गरज और बिजली की गड़गड़ाहट रह रहकर चौंका देती थी । बिजली गुल होने के कारण वे हॉस्टल के गलियारों में टहलने लगे थे ..तभी दीवार पर कुछ आकृतियाँ उभरीं , उसके दोस्त तो भाग गए पर शिखर के पैर मानो जमीन में धँस गये हों । वह स्तम्भित सा वहीं खड़ा रहा मानो किसी ने उसे सम्मोहित कर दिया हो । शायद वह आत्मा कुछ कहना चाहती थी , वह उस परछाई के साथ चलता रहा । शायद यह मनुष्य की प्रवृत्ति ही है कि उसे जिस बात के लिए मना किया जाए ,उसकी रुचि उसमें और अधिक बढ़ जाती है । वह जान लेना चाहता है भूत - भविष्य के  सारे रहस्य...शायद इसलिए वह नवीन सन्धान करता रहता है । डर के साथ अतीत को जानने की उत्सुकता में शिखर के कदम बढ़े चले जा रहे थे । उन परछाइयों में वह उस रात को देख  रहा था ,,  वहाँ चार - पाँच लड़के और दो लड़कियाँ भी दिख रही थीं । वे मोहित के कमरे में पार्टी कर रहे थे ,टेबल पर प्लेट्स और बोतलें दिख रही थीं , सभी बहुत खुश दिख रहे थे । मोहित ने एक लड़की का हाथ पकड़ा था और किसी दूसरे लड़के ने उस पर आपत्ति की थी । कुछ पलों में वहाँ का माहौल बदल गया था । गाली - गलौच के साथ हाथापाई भी शुरू हो गई थी । तभी मोहित के सिर पर किसी ने वार किया था और वह बेहोश होकर गिर गया था । घबराए हुए उन लोगों ने उसके बिस्तर से चादर खींच कर उसका फंदा बनाया और मोहित को पंखे से लटका दिया था । किसी चलचित्र की भाँति सारी घटनाएं शिखर की नजरों के आगे उद्घाटित हुई थी । भयाक्रांत सा वह चुपचाप अपने कमरे में आ गया था और चेतनाशून्य होकर बिस्तर पर गिर गया था । शिखर की जब आँख खुली तो वह अस्पताल में था और दोस्तों के अनुसार  वह दो दिन से सो रहा था ।
              जागकर भी शिखर वह  सब भूल नहीं पा रहा था , वह क्या करे ,किसी को बताए कि नहीं । वह खुदकुशी नहीं हत्या थी और इसीलिए मोहित की आत्मा भटक रही है । शिखर ने पुराने कर्मचारियों , पुस्कालय और कार्यालय के माध्यम से वहाँ मरने वाले बाकी लड़कों का पता लगाया । वे सब मोहित की बैच के ही विद्यार्थी थे । शिखर उन्हें पहचान तो नहीं पाया था ,पर यह जान गया था कि मोहित ने उन्हें  उनके किये की सजा दे दी है और यह घटनाएं शायद तभी खत्म होंगी जब तक वे सभी गुनहगार सजा नहीं पा जाते जो उस घटना से जुड़े हैं ।
          बार - बार  भयावह घटनाएँ  होने के कारण अब उस कमरे को अलॉट करना बंद कर दिया गया था । कमरा बन्द रहने पर भी वहाँ से गुजरने पर शिखर को एक डर सा लगता था  , कई बार अजीब सी आकृतियाँ रात को दिखाई देती थीं । अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देती थीं मानो कोई सिसक रहा हो  ।  इसी कारण  उस कमरे के बगल वाले कमरों के लड़के  एक साल में कमरा खाली कर शहर में  किराये के घर में  चले जाते थे । धीरे - धीरे उस हॉन्टेड कमरे की कहानियों की वजह से वह विंग लगभग खाली हो गया था। शिखर और उसके दोस्त दूसरे विंग में रहते थे ,साथ ही हॉस्टल सस्ता पड़ता था और वहाँ मेस होने के कारण खाने की सुविधा थी इसलिए बहुत लोगों के लिए वहाँ रहना मजबूरी थी ।
      जब शिखर छठवें सेमेस्टर की तैयारी कर रहा था । वह और उसके दोस्त देर रात तक पढ़ रहे थे कि बाहर हॉल में जोर से बहस व झगड़े की आवाजें सुनाई पड़ीं  । वे बाहर आये तो देखा  उनके सीनियर राहुल और प्रेम  आपस में लड़ रहे थे  ,वे एक - दूसरे को किसी बात के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे और मार डालने की धमकी दे रहे थे...वहाँ  उपस्थित सभी लोगों ने उन्हें  समझाने की कोशिश की पर नतीजा बेअसर रहा । फिर वे अपने कमरे में चले गए ...वह रात बड़ी मनहूस थी , सबको डर लग रहा था पर किसी ने वार्डन को खबर नहीं किया । आँखों में ही रात गुजर गई , लगभग तीन या चार बजे शिखर सोने गया और सुबह नींद खुली तो हॉस्टल में हंगामा
मचा हुआ था  ,  राहुल  मरा  हुआ पाया गया था । उसका चेहरा बहुत वीभत्स हो गया था , कपड़े फ़टे हुए थे   ...उसके खून के छीटे यहाँ - वहाँ  बिखरे पड़े थे मानो मरने से पहले उसने बहुत संघर्ष किया हो और दीवार पर लिखा था 220 । वो बड़े दहशत भरे दिन थे । पुलिस की पूछताछ की कार्यवाही बहुत दिनों तक चलती रही । पुलिस प्रेम  पर हत्या का शक कर  उसे पूछताछ के लिए पकड़कर ले गई थी  । वह तो पागल सा हो गया था  । हॉस्टल में ऐसी घटनाओं की  पुनरावृत्ति होने के कारण यह केस सी. बी. आई. को सौंप दिया गया था ।
     पढ़ाई में व्यवधान होने के कारण शिखर ने भी हॉस्टल छोड़ दिया था और किराये का घर लेकर रहने लगा था । वहीं उसने अपनी पढ़ाई पूरी की , तब तक कमरा नम्बर 220  के मुकदमे का कोई  फैसला नहीं हुआ था । अपनी पढ़ाई पूरी कर वह जयपुर आ गया था , उसके बाद वह कभी भोपाल नहीं गया । आज  उसका रूममेट महेश मिला तो फिर वही डर ,वही खौफ  उसके सामने आ खड़ा हुआ था । उससे मालूम हुआ कि बाद में कोई सुबूत नहीं मिलने के कारण  प्रेम
छूट गया था ।  वह  राहुल की मौत के बाद अपने होशोहवास खो बैठा था । पढ़ाई छोड़कर बस इधर - उधर भटकता रहता । एक दिन हॉस्टल के ही पीछे बगीचे में पेड़ से लटककर  उसने खुदकुशी कर ली  । मोहित ने सबसे बदला ले लिया था , शिखर को आज तक समझ नहीं आया कि उसने अपना रहस्य उसके आगे क्यों खोला । हो सकता है वहाँ रह रहे और भी लोग इस रहस्य से परिचित हों और यह चाहते रहे हों कि मोहित उन सभी दोषियों को सजा दे । उस हॉन्टेड कमरा नम्बर 220  का रहस्य हॉस्टल के बन्द होने पर बाकी लोगों के लिए रहस्य ही बना रहा ।

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