हरियाली बिखरी कण-कण में
- गीत
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
हरियाली बिखरी कण-कण में ,शोभन है सुख-साज प्रिये ।
कब के बिछड़े आज मिले हैं , हम सावन में आज प्रिये ।
तृण-तृण झूमे नाचे मग में , फूलों से झुकती डाली ।
मलय सुवासित करता जग को ,संध्या के गालों लाली ।
रूठे-से तुम क्यों लगते हो , क्यों मुझसे नाराज प्रिये ।
कब के----
मोती की लड़ियों से सज्जित ,तालें नदियाँ निर्झर हैं ।
खिलते रक्तिम नीले नीरज , स्वागत करते हँस कर हैं ।
पावस की भीगी फुहार में , वनदेवी का राज प्रिये ।।
कब के—
पीहू-पीहू मोर नाचते , चिड़िया मंगल गान करें ।
फुदक-फुदक कर दादुर बोले ,पिकी सुरमयी तान भरें ।
सृष्टि मनोहर प्रेम जगाए ,प्रकृति बढ़ाती लाज प्रिये ।।
कब के----
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