देश-धर्म कर्तव्य-कर्म हित
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
देश-धर्म कर्तव्य-कर्म हित,
जो कंटक-पथ चलते हैं ।
उनके पावन चरण चूमने
शत-शत सुमन मचलते हैं ।।
जीवन की सूखी सरिता में ,
करुणा धारा बरसाते ।
सुन लेते हैं क्रंदन जग की ,
शुभचिंतक वे बन जाते ।
सदा चमकते हीरे जैसे ,
जो गुदड़ी में पलते हैं ।।
मिथकों को चले तोड़ने ,
अग्रिम पंक्ति मिले उनको ।
साहस संयम धीरज रखकर ,
जीवित रखते हैं धुन को ।
दंश-उपेक्षा को वे सहते ,
व्यथा-अग्नि में जलते हैं ।
पत्थर उनको खाने पड़ते ,
हैं मशाल जिन हाथों में ।
साथ मिला है उनको जग का ,
मंगल जिनकी बातों में ।
मीठे जल के स्रोतों जैसे,
धरती फोड़ निकलते हैं ।।
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