नटवर नागर आओ
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
पार्थ लक्ष्य-दिग्भ्रमित खड़ा है , सही राह दिखलाओ ।
चक्र सुदर्शन आज उठा फिर , नटवर नागर आओ ।।
शीश उठाए भ्रष्ट आचरण , मर्यादा को तोड़े ।
झूठ अहं छल के पाहन से, सच की गगरी फोड़े ।
कंस दमित करता अपनों को , सत्ता-सुख को पाने ।
दैत्य कुचलते हैं सपनों को , निज वर्चस्व बचाने ।
जीवन-मूल्य ध्वस्त होते हैं , ज्ञान-मार्ग बतलाओ ।।
रास रचाकर वृंदावन में , सबको नाच नचाया ।
इंद्र- दर्प का मर्दन करने , पूजन बंद कराया ।
गोपी मीरा राधा ने भी , कुछ खोया कुछ पाया ।
केवल पाना प्रेम नहीं है , तुमने यह समझाया ।
जटिल प्रेम की परिभाषा है , सरल इसे कर जाओ ।।
मोह गिराता है महलों को ,खोकर सब कुछ रोते ।
स्वार्थी चक्रव्यूह में फँसकर ,अपनों को हैं खोते ।
लोभ-लालसा दुर्योधन की ,अब भी जग में पलती ।
जरासंध-सी काम-पिपासा , ललनाओं को छलती।
शील-हरण करता दुःशासन ,आकर चीर बढ़ाओ ।।
राह गलत भी अपनाते हैं , लोग सफलता पाने ।
तार-तार रिश्तों के रेशे , कर जाते अनजाने ।
क्षणभंगुर है जीवन फिर भी , जाल स्वार्थ का बुनते ।
कर्ण , भीष्म , शिशुपाल कई हैं , गलत पक्ष को चुनते ।
कर्मफलों में सबका हिस्सा ,बात पुनः समझाओ ।।
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