दिल में दीप जलाने वाले
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
रश्मिरथी का हुआ आक्रमण, तम ने राजपाठ सब हारा।
विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।
करते स्वच्छ कंटकित पथ को, मानें सबके दुख को अपना।
जग-कल्याणी भाव हृदय में, देखें हरदम जन-हित सपना।
राष्ट्रधर्म सर्वोपरि समझें, न्यौछावर तन-मन-धन कर दें।
धरती माता के आँचल को, प्रियता के पुष्पों से भर दें।
दिल में दीप जलाने वाले , कर जाते हैं जग उजियारा ।
विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।
अंतस के कलुष-कुतर्कों को, ज्ञानदीप आलोकित करता।
स्त्रोत जहाँ हो पावन प्रेमिल, शुचि स्नेह-नीर अविरल झरता।
द्वेष-दंभ की बढ़ती खाई, दूरी लाती संबंधों में।
टूटी कड़ियाँ परिवारों की, चलती केवल अनुबंधों में।
जागृत जीवन-मूल्य करें तो, बचा सकेंगे भाईचारा।।
विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।
संकल्पों की शक्ति संपदा, दृढ़ करती है आधारों को।
स्त्रोतस्विनी उद्दाम वेग से, देती ज्यों बहा किनारों को।
भारत-भू के अनमोल रत्न, प्रेरित करते जनमानस को।
संतों गुरुओं की वाणी से, ज्योतित कर लेना अंतस को।
प्यास बुझाती और तारती, सुरसरिता की निर्मल धारा।।
विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।
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