मंदिर के मूरत जैसी माँ
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
मात सम नहीं पावन दूजा ।
माँ की सब करते हैं पूजा ।।
माँ बिन घर सूना हो जाता ।
माँ से घर में सब सुख आता ।।
माँ सब कुछ संभव कर जाती ।
माँ से ही सब खुशियाँ आती ।।
माँ निज सुत पर वारी जाती ।
चाहत उसकी मारी जाती ।।
निज दुख सबसे मात छुपाती ।
मन की बात दबी रह जाती ।।
गाँठ यही तन- मन को खाती ।
पीर हृदय का रोग लगाती ।।
आदर ममता देना सीखो ।
माँ की पीड़ा हरना सीखो ।।
जीवनपथ में साथ निभाना ।
चाहत पूरी करते जाना ।।
मंदिर की मूरत के जैसी ।
माँ होती है पावन वैसी ।।
पूजन व्रत सब उनसे होते ।
देव-मनुज पद उनके धोते ।।
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