पिता क्या ऐसे ही होते हैं...
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
पिता...जो कभी न थकते हैं,
बच्चों की खुशी में सुख पाते,
अपनी तकलीफें भूल जाते,
दिन -रात मेहनत करते हैं ।
परिवार के लिये खटते ,
सारा सुख दूसरों के लिये ,
अपने बारे में कब सोचते हैं ।
कब से देख रही हूँ ...
पिता की फ़टी बनियान..
चप्पल भी घिसते तक पहनते हैं ।
पर ,अभी तो यह चलेगी ,
बच्चों की फीस भरनी है ,
मकान की छत सुधरवानी है ,
भाई का ऑपरेशन है ,
सब की जरूरतें पहले,
कहकर अपने खर्च टालते हैं ।
वो कभी नहीं कहते ,
उन्हें क्या खाना पसंद है ,
वो कभी बताते ही नहीं कि,
उन्हें दिलीप कुमार की फिल्में
अच्छी लगती थी कभी ...
गाने सुनना कितना पसन्द था,
पर कभी समय ही नहीं मिला कि
बैठकर सुनें कभी इत्मीनान से ।
वो अपनी खुशी ...
सबके चेहरों में तलाश करते हैं ।
बीत गया उनका जीवन ..
सबकी ख्वाहिशें पूरी करते ,
कभी फुर्सत ही नही मिली ..
कि सोचें उनकी भी कोई चाहत है।
जिम्मेदारियों के निर्वहन में ही,
सच्ची राहत महसूस करते हैं ।
क्या सारे पिता ऐसे ही होते हैं ।
Leave A Comment