बाईस्कोप माँ
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
जब भी घर जाओ,
चूम लेतीं हैं हथेली।
ले लेतीं हैं बच्चों की,
सौ-सौ बलैंया।
माँ ने पाले पोसे
अपने बच्चे।
फिर देखभाल की अपने
नाती, पोते, पोतियों की।
सबकी खुशियों का रखा ध्यान,
जीवन भर।
सबके लिए अचार, बड़ियों
की व्यवस्था।
त्यौहारों पर आटे,तिल के लड्डू
दही-बड़े,पीड़िया।
जन्मदिवस पर खीर,
थोड़ा-थोड़ा सबके हिस्से,
बँटती रही माँ ।
सबकी पसंद, नापसंद को लेकर
खटती रही माँ ।
बच्चों की सफलता पर
गर्वित होतीं।
दुहरातीं कई-कई बार
उनके बचपन के किस्से।
शरारतों को याद कर
आती मधुर मुस्कान।
वर्तमान में अतीत को जीतीं
माँ के बाईस्कोप में
चलती रहती हैं स्मृतियों
की तस्वीरें खटाखट।
पुरानी बातें याद करते अक्सर
वह खो जातीं हैं ,
समय की भूल-भुलैया में।।
Leave A Comment