आभासी दुनिया
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
"पुनीत! ऋषभ की माँ का निधन कुछ दिनों पहले हुआ है , चल उससे मिल आते हैं "- रवि ने कहा।
"क्या होगा जाकर ? जाने वाला वापस तो नहीं आयेगा। अरे यार व्हाट्सएप्प पर श्रद्धांजलि दे देंगे। आने-जाने में टाइम वेस्ट कौन करे?" पुनीत ने प्रत्युत्तर में कहा।
दो वर्ष बाद पुनीत के पिता का निधन होने पर उसने महसूस किया कि उसकी सोच गलत थी। श्रद्धांजलि देने मिलने वाले हर व्यक्ति से बात कर जो सुकून मिला वह अविस्मरणीय था। शोक कार्यक्रम के बहाने रिश्तेदारों का आना शोक संतप्त परिवार को संबल प्रदान करता है और विभिन्न रस्म जो पहले फालतू लगते थे इसी बहाने परिजन अपनों से बिछड़ने की पीड़ा भूल जाते हैं, पुनीत अब आभासी दुनिया से बाहर आ चुका था।









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