कुंभ स्नान
लघुकथा
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
“ शांति ! कल जल्दी आकर घर की सफाई कर लेना , हम लोग सुबह छः बजे प्रयाग के लिए निकल जायेंगे। देख तू देर मत करना “-- मालकिन मधु ने कहा ।
“ दीदी ! बच्चे की तबियत ठीक नहीं है, आप ने एडवांस देने को कहा था ना।”
“ हां बोली तो थी पर तब कुंभ स्नान के लिए जाने का प्लान नहीं था। अब अचानक बन गया तो खर्चा भी बढ़ गया इस महीने । वहां से वापस आके देखती हूँ। “
शांति उदास मन से काम करके बाहर निकली । देखा घर के मालिक सुधाकर गाड़ी में कुछ सामान रख रहे थे। उन्होंने शांति को आवाज लगाई - “शांति जरा यह सामान गाड़ी में रख देना “ और उसके हाथों में चुपचाप 2000 रुपए रख दिए । बेटे को किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाना ,चिंता मत करना वह ठीक हो जाएगा।”
शांति की आँखों में खुशी और आभार के बूँद झिलमिला उठे थे , जिन्हें देख सुधाकर को बिना कुंभ गए ही अत्यंत सुखद अनुभूति हो रही थी।









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