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  पंख होते तो उड़ आती रे.... अभिनेत्री संध्या और उनकी क्लासिक फिल्में

 आलेख - प्रशांत शर्मा
पंख होते तो उड़ आती रे....गाने को फिल्मी परदे पर जीवंत करने वाली संध्या शांताराम उर्फ विजया देशमुख 4 अक्टूबर को सचमुच हम सबको छोडक़र उड़ चलीं... अभी पिछले ही महीने 27 सितंबर को उन्होंने अपना 87 वां जन्मदिन मनाया था। हिंदी फिल्म जगत की बेहतरीन नृत्यांगनाओं का जब भी जिक्र होगा अभिनेत्री संध्या का नाम उनमें हमेशा शामिल रहेगा। गाने के बोल और संगीत के साथ उनके अंग-अंग की थिरकन अजब सा आर्कषण पैदा करती थी, जो उनकी पहचान बन चुका था।  सही मायनों में संध्या ने अपने अभिनय की बजाय नृत्यों के कारण अपने दौर में एक अलग पहचान बनाई। 
अभिनेत्री विजया देशमुख के रूप में जन्मीं संध्या को वी. शांताराम ने मराठी फिल्म अमर भूपाली (1951) के लिए कलाकारों की कास्टिंग के दौरान देखा था। उनकी गायन आवाज से प्रभावित होकर  वी. शांताराम ने उन्हें एक गायिका की भूमिका में लिया, जो उनके फि़ल्मी करियर की शुरुआत थी। बाद में, वी. शांताराम ने अपनी पत्नी और अभिनेत्री जयश्री से अलग होने के बाद संध्या से शादी कर ली।  संध्या  फिल्मकार वी शांताराम की तीसरी पत्नी थीं और वे उनसे उम्र में 37 साल बड़े थे।  दोनों के कोई बच्चे नहीं थे।
 कई प्रशंसित फिल्में 
 संध्या को 1955 की संगीतमय ड्रामा फिल्म झनक झनक पायल बाजे से लोकप्रियता मिली, जिसमें उन्होंने एक कथक नर्तकी की भूमिका निभाई थी।  चूंकि उनके पास कोई औपचारिक नृत्य प्रशिक्षण नहीं था, इसलिए उन्होंने फिल्म झनक झनक पायल बाजे के लिए सह-कलाकार गोपी कृष्ण से शास्त्रीय नृत्य की गहन शिक्षा ली ।  फिल्म में दोनों कथक नर्तकियों की भूमिका निभाते हैं जो एक महत्वपूर्ण प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन जब वे प्यार में पड़ जाते हैं तो उन्हें अपने नृत्य गुरु के विरोध का सामना करना पड़ा हैं। फिल्म बहुत सफल रही और चार फिल्मफेयर पुरस्कारों के साथ-साथ हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता ।  
 अभिनेत्री संध्या वी. शांताराम की कई प्रशंसित फि़ल्मों में दिखाई दीं, जिनमें दो आंखें बारह हाथ (1957) शामिल हैं, जहाँ उन्होंने चंपा नामक एक खिलौना विक्रेता की भूमिका निभाई, जो जेल वार्डन और कैदियों को मोहित कर लेती है। एक और फिल्म थीं नवरंग (1959) जिसमें उन्होंने एक कवि की साधारण पत्नी का किरदार निभाया, जिसकी काल्पनिक छवि उसकी प्रेरणा बन जाती है। नवरंग फिल्म का होली गीत -अरे जा रे हट नटखट में संध्या के डांस और अभिनय ने सबका मन जीत लिया। आज भी यह गीत लोगों की जुबां पर है। 
 उनका निडर अंदाज  
 उन्होंने स्त्री (1961) में अभिनय किया, जो महाभारत से शकुंतला की कहानी का एक फिल्मी संस्करण था । जैसा कि महाकाव्य में उल्लेख है कि शकुंतला और उनके पुत्र भरत जंगल में शेरों के बीच रहते थे, शांताराम ने कुछ दृश्यों में असली शेरों को शामिल करने का फैसला किया। संध्या के पास इन दृश्यों के लिए कोई डबल नहीं था; इसलिए उन्होंने एक शेर को काबू करने वाले के पीछे रहकर और शेरों के साथ पिंजरे में अभ्यास करके अपने किरदार की तैयारी की। संध्या की आखिरी प्रमुख भूमिका पिंजरा के मराठी संस्करण में थी जिसमें उनका किरदार एक तमाशा कलाकार का था, जिसे एक स्कूल शिक्षक से प्यार हो जाता है जो उसे सुधारना चाहता है। शिक्षक की भूमिका में श्रीराम लागू थे , जो उनकी पहली फिल्म थी। 
  फिल्मफेयर अवॉर्ड 
अभिनेत्री संध्या शांताराम ने फिल्म पिंजरा के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फि़ल्मफ़ेयर मराठी पुरस्कार और चंदनाची चोली अंग अंग जाली के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया। 
 
 

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