कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी -
-मखमली आवाज की मलिका मुबारक बेगम का मुफलिसी में बीता उम्र का अंंतिम पड़ाव
(पुण्यतिथि पर विशेष)
नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले
ये दुआ मांगते हैं नैन ये रोने वाले
नींद उड़ जाए तेरी..
ये गीत 1968 में आई फिल्म जुआरी का है। इस गीत को आवाज़ देने वाली हिन्दी फिल्मों की मशहूर गायिका मुबारक बेगम की आज पुण्यतिथि है। मुबारक बेगम का एक और गाना काफी लोकप्रिय रहा- कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी...। आज से चार साल पहले 18 जुलाई 1916 को मखमली आवाज की मलिका मुबारक बेगम में अंतिम सांस ली।
मुबारक बेगम जिनकी आवाज़ सुनकर बिजलियां कौंध जाती हैं, दिल थम जाता है। 1950 से 1970 के बीच उनकी आवाज़ से हिंदी सिनेमा की गलियां रोशन थीं। उस दौर में शंकर-जयकिशन, खय्याम, एसडी बर्मन जैसे बड़े संगीतकारों के सुरों के साथ अपनी जादुई आवाज़ घोली।
1950 और 60 के दशक में मुबारक बेगम की सुरीली आवाज का जादू चला। उन्होंने हमराही, हमारी याद आएगी, देवदास, मधुमती, सरस्वतीचंद्र जैसे कई हिट फिल्मों के गाने गाए। उम्र के अंतिम पड़ाव में मुबारक बेगम के दिन काफी मुफलिसी में बीते। उम्र की बीमारियों ने उन्हें जकड़ लिया और उनके बेटे के पास उनके इलाज के लिए पैसे नहीं थे। टैक्सी चलाकर वह किसी तरह अपने परिवार का खर्च चला रहा था। .
बेटी के निधन के बाद से मुबारक बेगम की तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी। उन्होंने लोगों से मदद मांगी, सरकार को से भी गुहार लगाई। कुछ मदद मिली भी, लेकिन वह काफी नहीं थी। आखिरकार सुनील दत्त ने उनकी मुश्किल को समझा और अपने प्रभाव का उपयोग कर जोगेश्वरी में सरकारी कोटे से उनको एक छोटा-सा फ्लैट दिलवा दिया। उन्हें सात सौ रुपये माहवार की पेंशन भी मिलने लगी। मुबारक बेगम की आवाज के दीवाने दुनियाभर में फैले हुए हैं। उनकी दयनीय हालत देख उनके प्रशंसक कुछ न कुछ रुपये हर महीने उन्हें भिजवाते रहे। आखिर सात सौ रुपये महीने में गुजारा कैसे संभव था। बेटा टैक्सी चलाने लगा। पड़ोसी विश्वास नहीं कर पाते कि यह बूढ़ी, बीमार और बेबस औरत वह गायिका है जिसके गीत लोगों को दीवाना बना दिया करते थे। आखिरकार 18 जुलाई को वे इस दुनिया से ही रुखसत हो गईं।
मुबारक बेगम के बारे में कहा जाता है कि वे पढ़ी- लिखी नहीं थीं, लेकिन गाने को इसकदर कंठस्थ कर रिकॉर्डिंग किया करती थीं कि कहीं कोई चूक नहीं हो पाती थी। मुबारक बेगम जब बुलंदियों को छू रही थीं तभी फि़ल्मी दुनिया की राजनीति ने उनकी शोहरत पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया। मुबारक को जिन फि़ल्मों में गीत गाने थे, उन फि़ल्मों में दूसरी गायिकाओं की आवाज़ को लिया जाने लगा। मुबारक बेगम का दावा है कि फि़ल्म जब जब फूल खिले का गाना परदेसियों से ना अंखियां मिलाना उनकी आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया, लेकिन जब फि़ल्म का रिकॉर्ड बाजाऱ में आया तो गीत में उनकी आवाज़ की जगह लता मंगेशकर की आवाज़ थी। यही घटना फि़ल्म काजल में भी दोहराई गयी। और सातवां दशक आते आते मुबारक बेगम फि़ल्म इंटस्ट्री से बाहर कर दी गयीं। 1980 में बनी फि़ल्म राम तो दीवाना है में मुबारक का गाया गीत सांवरिया तेरी याद में उनका अंतिम गीत था। करीब सवा सौ फि़ल्मों में अपनी आवाज़ का जादू जगाने वाली मुबारक बेगम को कभी कोई बड़ा फि़ल्मी पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला, क्योंकि वे तो काम के प्रति समर्पित , निश्छल थी और राजनीति करना नहीं जानती थीं।. (छत्तीसगढ़आजडॉटकॉम विशेष)
Leave A Comment