एक संघर्ष
लघुकथा
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नेपानगर कागज का कारखाना बंद होने के कारण कई लोग बेरोजगार हो गए थे । लगभग चालीस की उम्र वालों के लिए नया काम ढूँढना अत्यंत दुष्कर हो गया था । दीपा अपने परिवार के साथ मायके लौट आई थी । एक उम्मीद थी कि बड़े शहर में कुछ न कुछ काम मिल ही जायेगा। वे दिन बहुत मुश्किलों भरे और निराशाजनक थे । तब दीपा को शौक के लिए सीखा गया ब्यूटी पार्लर का कोर्स याद आया और उसने घर के एक कमरे में अपना काम शुरू किया। उसकी व्यवहार कुशलता और लगन के कारण काम बढ़ता गया। उसने किराए पर दुकान ले लिया और अपने साथ कई सहायक भी रख लिए। वह लोगों को प्रशिक्षण भी देने लगी, इस प्रकार उसने अपने घर की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को संभाल लिया। उसकी मदद से उसके पति ने भी एक दुकान खोल ली और वे विषम परिस्थितियों से लड़कर बाहर निकलने में सफल हुए। अपने जीवन संघर्ष से उसने यह सिद्ध कर दिया कि जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपना विश्वास बनाये रखे और उनसे जूझकर बाहर निकलने में सफल हो जाए, वही सच्चा इंसान है ।








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