दीक्षा की कुंडलिया
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
दीपक सम जलते रहें , जग में भरें उजास ।
कलुष हृदय के दें मिटा , दुःख न फटके पास ।।
दुःख न फटके पास , मिले खुशियाँ जीवन में ।
सत्कर्मों का बाग , पुण्य ही खिलें चमन में ।।
‘दीक्षा’का संदेश , कमल खिलते ज्यों कीचक ।
आभा भर सर्वत्र , बनें शुभतायुत दीपक ।।
जीवन होता है वही, जैसी रखते सोच।
खुश रहना यदि चाहते, हो चिंतन में लोच।।
हो चिंतन में लोच, समन्वय बहुत जरूरी।
दृढ़ता हो संकल्प, रखें पर जिद से दूरी।।
ढलें वक्त के साथ, स्वस्थ रहता है तन-मन।
मृदुल मधुर व्यवहार, हर्षमय सार्थक जीवन।।
कैसे-कैसे लोग हैं, समझें नहीं जुड़ाव।
कमियाँ सबमें देखते, देते रहें सुझाव।।
देते रहें सुझाव, तुष्ट वे कभी न होते।
कुढ़ते रहते आप, आस जीवन की खोते।।
रोते हैं दिन-रात, बरसते बादल जैसे।
घूमें लिए तनाव, खुशी मिल पाए कैसे।।
जानें संस्कृति देश की, यह अपनी पहचान।
रंग विविध इसमें मिलें, जगत करे सम्मान।।
जगत करे सम्मान, पर्व त्यौहार अनूठे ।
भ्रमित करे बाजार, मूल्य अपने हैं रूठे।।
परंपरा संस्कार, धरोहर इनको मानें।
संरक्षण दें रीति, महत्ता जन-जन जानें।।








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