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   आयुर्वेद के अनुसार कैसे चुनें खाना बनाने के लिए सही तेल?

 क्या आप जानते हैं आयुर्वेद के अनुसार आपकी प्रकृति के लिए कौन-सा तेल सबसे बेस्ट है? आयुर्वेद के अनुसार जिस तरह आपको अपनी प्रकृति के हिसाब से भोजन करना होता है, उसी तरह भोजन को बनाने के लिए भी प्रकृति के अनुसार ही तेल का उपयोग करना चाहिए। जी हां,  आपको खाना बनाने के लिए भी अपनी प्रकृति के अनुरूप ही तेल का चुनाव करना चाहिए। खाना बनाने वाले तेल भी आपके शरीर के अनुसार ही हो तो आप हमेशा स्वस्थ रह सकते हैं।  
 आयुर्वेद के अनुसार शरीर वात, पित्त और कफ से बना होता है। इनमें से किसी का भी असंतुलन होने पर व्यक्ति रोगों से घिर जाता है। अगर शरीर में वात बढ़ता है तो व्यक्ति को हड्डियों, जोड़ों में दर्द होने की समस्या हो सकती है। इसके विपरीत अगर पित्त बढ़ता है, तो व्यक्ति को गुस्सा बहुत आता है। साथ ही त्वचा रोग भी पित्त बढऩे पर होने लगते हैं। शरीर में कफ की मात्रा बढऩे पर व्यक्ति को खांसी, जुखाम या बलगम की समस्या हो सकती है। ऐसे में आपको स्वस्थ रहने के लिए तीनों दोषों को संतुलन में रखना बहुत जरूरी होता है।  
 वात प्रकृति के लिए तेल  
वात प्रकृति वाले व्यक्तियों का शरीर दुबला-पतला होता है। इनकी स्किन ड्राय और ठंडी होती है। वात प्रकृति वालों को कभी भूख बहुत ज्यादा लगती है, तो कभी कम। इन लोगों को ठंडी चीजों का सेवन करने से बचना होता है। ठंडा वातावरण और ठंडी चीजों के सेवन से उन्हें वात दोष हो सकता है। इसलिए इन लोगों को हमेशा गर्म तासीर की चीजों का सेवन करना चाहिए। वात प्रकृति के लोगों को खाना बनाने के लिए भी गर्म तासीर वाले तेल का इस्तेमाल करना चाहिए। 
 सरसों का तेल और मूंगफली का तेल तासीर में गर्म होती है। इसलिए वात प्रकृति के लोग खाना बनाने के लिए इन तेलों का इस्तेमाल कर सकते हैं। मूंगफली के तेल में ढेरों पोषक तत्व होते हैं। दोनों तेल वायु को बढऩे से रोकते हैं और वात दोष को संतुलित करते हैं। 
 पित्त प्रकृति के लिए तेल  
पित्त प्रकृति के लोगों को शरीर बेहद नाजुक होता है। इन लोगों को गर्मी बिल्कुल सहन नहीं होती है। इन्हें त्वचा रोग और मुंह में छाले बहुत परेशान करते हैं। इन लोगों को प्यास बहुत ज्यादा लगती है। पित्त प्रकृति के लोगों को गुस्सा बहुत जल्दी आता है। इन्हें ठंडा वातावरण और ठंडी चीजों का सेवन करना पसंद होता है। ऐसे लोगों को गर्म तेल से उन्हें नुकसान हो सकता है। 
 नारियल के तेल की तासीर बहुत ठंडी होती है। ऐसे में पित्त प्रकृति वाले लोगों के लिए इसका सेवन करना बेहद लाभकारी हो सकता है। इससे उन्हें पेट में ठंडक मिलेगी और दोष संतुलन में रहेगा। साथ ही घी पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में लाभकारी होता है। गाय का घी कई रोगों को दूर करने में मददगार होता है।  
 कफ प्रकृति के लिए तेल 
कफ प्रकृति के व्यक्ति  मजबूत होते हैं, लेकिन हमेशा सुस्ती रहती है। इन लोगों को नींद बहुत अधिक आती है। भूख लगना,  शरीर में भारीपन,  शरीर में गीलापन महसूस होना और आलस कफ प्रकृति के लोगों के लक्षण होते हैं। इन लोगों को भी अपनी प्रकृति को ध्यान में रखकर ही खाना बनाने वाले तेल का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसे लोगों को सरसों का तेल और तिल का तेल तासीर में गर्म होते हैं। इनका सेवन कफ वाले लोग आसानी से कर सकते हैं। इनके उपयोग से कफ दोष संतुलन में रहता है।  

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