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पुराने दर्द का इलाज करने के लिए दर्द निवारक दवाएं काफी नहीं

 सिडनी. (360इन्फो) स्कैन में प्राय: पीठ की समस्या से पीड़ित लोगों को कोई नुकसान नहीं दिखता, लेकिन डॉक्टरों को इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है कि वे दर्द से कैसे निपटें। जब हम अचानक दर्द का अनुभव करते हैं तो कारण की तलाश करना और इसे खत्म करना स्वाभाविक हो जाता है। यदि हमारे पैर में कांटा लगने से दर्द होता है, तो हम उसे आसानी से दूर कर देते हैं। यदि दर्द अधिक समय तक बना रहता है, तो हम पैरासिटामोल ले सकते हैं, या आइस-पैक का उपयोग कर सकते हैं। आमतौर पर ऐसे तरीके काम करते हैं। लेकिन कभी-कभी दर्द दूर नहीं होता। जब दर्द तीन महीने से अधिक समय तक बना रहता है, तो इसे पुराना दर्द कहा जाता है तथा कहानी और अधिक जटिल हो जाती है। लगभग 20 प्रतिशत वयस्क किसी न किसी प्रकार के पुराने दर्द का अनुभव करते हैं। कई लोगों के लिए परेशान करने वाला हो सकता है। दर्द निवारक (एनाल्जेसिक) या सर्जरी से पुराने दर्द से शायद ही कभी राहत मिलती है - हालांकि यह इन विकल्पों को आजमाने से लोगों को नहीं रोकता है। जब कोई दर्द बना रहता है, तो उपचार योग्य या प्रबंधनीय विशिष्ट कारणों की पहचान करने या उनका पता लगाने के लिए एक संपूर्ण चिकित्सा परीक्षण होना महत्वपूर्ण है। कुछ प्रकार का पुराना दर्द किसी अंतर्निहित बीमारी या स्थिति के कारण हो सकता है, जैसे गठिया या ट्यूमर। लेकिन अन्य पुराने दर्द में, अधिकांश पीठ दर्द की तरह, किसी विशिष्ट शारीरिक कारण की पहचान नहीं हो पाती। भले ही स्पाइनल स्कैन में अपकर्षक परिवर्तन पाए जाते हैं, यह दर्द का कारण नहीं हो सकता: कई अध्ययनों में ऐसे लोगों की रीढ़ की हड्डी में बदलाव पाया गया है जिन्हें दर्द नहीं होता, वहीं ऐसा भी होता है कि पीठ दर्द से पीड़ित अन्य लोगों की रीढ़ की हड्डी में कोई बदलाव न दिखे। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पुराने दर्द से पीड़ित कई लोगों के लिए यह विश्वास करना कठिन होता है कि आधुनिक चिकित्सा और शल्य चिकित्सा उनके दर्द को ठीक नहीं कर सकती। वे अकसर घबराहट की भावना और अपने स्वास्थ्य पेशेवरों से निराश होने की बात कहते हैं। सिर्फ पुराने दर्द से पीड़ित लोग ही लगातार दर्द से परेशान और निराश नहीं रहे हैं। 1982 में, सिएटल में वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अमेरिकी न्यूरोसर्जन डॉक्टर जॉन लोसर ने एक सर्जन के रूप में अपने रोगियों को पीठ दर्द से विश्वसनीय रूप से छुटकारा दिलाने में विफल रहने पर निराशा व्यक्त की थी। यह समझने के अपने प्रयासों में कि वह कहाँ गलत हैं, डॉक्टर लोसर को यह एहसास हुआ कि पीठ दर्द का जवाब पीठ में नहीं है। उनकी जांच और सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श के परिणाम को दर्द के "बायोसाइकोसोशल मॉडल" के रूप में जाना जाने लगा। यह कहता है कि लगातार दर्द मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और जैविक कारकों के बीच गतिशील कारकों का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, पुराने पीठ दर्द से पीड़ित अधिकतर लोगों को पीठ की जांच जारी रखने से मदद नहीं मिलती। केवल अनुमानित जैविक, या 'पैथोफिजियोलॉजिकल' समस्या पर लक्षित उपचार के पर्याप्त होने की संभावना नहीं है। इसके बजाय, लोसर (और अन्य) ने महसूस किया कि उन्हें इस बात की बेहतर समझ प्राप्त करने की आवश्यकता है कि पीठ के बाहर के कारक (या जहां भी पुराने दर्द महसूस हो रहा हो) प्रत्येक रोगी के दर्द की समस्याओं के लिए कुछ न कुछ कारक जिम्मेदार रहे हैं और उन्हें किसी उपचार योजना में शामिल किया जा सकता है। वर्ष 1982 के बाद से 40 साल में, कई देशों के अनुसंधानकर्ताओं ने पुष्टि की है कि स्कैन या शारीरिक परीक्षण प्राय: रोगियों द्वारा बताए गए दर्द के अनुभव और प्रभाव से बहुत कम या कोई संबंध नहीं रखते हैं। यहां तक ​​​​कि जब घायल या संवेदनशील ऊतक का सबूत होता है, तो ऐसे परिवर्तनों के प्रभाव को लेकर रोगियों के बीच अकसर काफी भिन्नता होती है। इसके साथ ही ये सबूत बढ़ गए हैं कि मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं, जैसे कि ध्यान, दर्द के बारे में राय, और व्यक्ति की वर्तमान मनोदशा, साथ ही साथ व्यवहार पैटर्न भी दर्द के अनुभव और प्रभाव में योगदान कर सकते हैं। दर्द को दूर करने के लिए किसी मरीज के पैर से कांटा निकालने की साधारण स्थिति के विपरीत, लोगों के लिए उपचार जहां जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों की एक श्रृंखला को व्यक्ति के दर्द के कारण का जिम्मेदार माना जाता है, इन कारकों के यथासंभव समाधान का प्रयास किया जाना चाहिए। ऐसा करने में विफलता का जोखिम रहता है जिसने डॉ लोसर को बहुत निराश किया। हम डॉ. लोसर की निराशा से काफी आगे निकल आए हैं। अब हम जानते हैं कि अधिक व्यापक दृष्टिकोण, जो लगातार दर्द के जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों का समाधान करता है, उन उपचारों की तुलना में अधिक प्रभावी होता है जो शरीर के सिर्फ दर्द से पीड़ित हिस्सों को लक्षित करते हैं।

 

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