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रिसर्च में दावा- मुश्किल हालात में भी युवाओं से ज्यादा खुश और पॉजिटिव रहे बुजुर्ग
-  वजह- सिर्फ पैसों के लिए काम की बाध्यता नहीं रही
वॉशिंगटन। अमेरिका में कोरोना महामारी से बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। यहां अब तक साढ़े 5 लाख लोग जान गंवा चुके हैं, जिनमें 50 साल से अधिक उम्र के 51 प्रतिशत लोग शामिल हैं। सुखद यह है कि जवानों की तुलना में बुजुर्ग कहीं ज्यादा खुश और सकारात्मक रहे हैं। इसका खुलासा स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च में हुआ है। रिसर्च के मुताबिक, ढलती उम्र के साथ चुनौतियों से निपटने और मुश्किल हालात में सामंजस्य बिठाने की क्षमता बढ़ जाती है। कोरोनाकाल में उन्हें इसका फायदा भी मिला है।
सकारात्मक भावों का स्तर अधिक रहा
रिसर्च टीम का नेतृत्व करने वालीं स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के दीर्घायु केंद्र की मनोविज्ञानी लॉरा कास्र्टेंसन का कहना है कि बूढ़े होने के साथ लोगों में भले ही मानसिक तीव्रता का स्तर घटता है या शारीरिक कमजोरी आती हो, लेकिन उनकी खुशी में इजाफा होता है। युवाओं की तुलना में 50 साल और उससे ज्यादा उम्र के लोगों में सकारात्मक भावों का स्तर अधिक रहता है। वे बहुत कम नकारात्मकता महसूस करते हैं। इस उम्र के लोग सिर्फ पैसे के लिए काम करने और क्रूर बॉस या मकान मालिक को बर्दाश्त करने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस अवस्था में वह बहुत लंबे समय की तुलना में रोजमर्रा की गतिविधियों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं, जो नि:स्वार्थ आनंद देता है। दादा-दादी बनने के बाद बच्चों की देखरेख, स्कूल लाने-ले जाने जैसे कामों में व्यस्त रहने के कारण उनके जीवन में तनाव नगण्य हो जाता है।
कोरोना से बुजुर्गों का जीवन ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ
इस उम्र में अक्सर लोग भविष्य में क्या बन सकते हैं, इसकी तुलना में वर्तमान में वे क्या हैं, इस पर ज्यादा फोकस करते हैं। यही वजह है जो उन्हें युवकों की तुलना में ज्यादा खुश रखती है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक सुजैन चाल्र्स का कहना है कि जब महामारी फैल रही थी तो सभी ने यह माना कि बुजुर्गों पर इसका ज्यादा असर हो रहा है। युवाओं की तुलना में वे ज्यादा जान गंवा रहे थे। लेकिन इन शोधों के बाद अब बुजुर्ग कह सकते हैं कि उनका जीवन इतना प्रभावित नहीं हुआ, जितना उनके बच्चों या नाती-पोतों का हुआ है।
रिसर्च का मकसद: चुनौतियों का आसानी से कैसे मुकाबला करते हैं बुजुर्ग
अप्रैल में हुए शोध में अमेरिका के कई राज्यों के 18 से 76 साल के 1,000 लोगों को शामिल किया गया था। दरअसल, मनोवैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश में थे कि लोग बढ़ती उम्र में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से निपटना सीख जाते हैं या उन्हें नजरअंदाज करने की खूबी पहचान लेते हैं ताकि तनावपूर्ण स्थितियों से आसानी से मुकाबला किया जा सके। इसके लिए वैज्ञानिकों को अनुकूल माहौल की तलाश थी और संयोग से अप्रैल में उन्हें यह मौका मिल भी गया, जब महामारी अमेरिका में तेजी से फैल चुकी थी।

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