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पीएम मोदी ने चक्रधारी और चरखाधारी मोहन पर की मन की बात

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे कार्यकाल में रेडियो पर तीसरी बातचीत में दो मोहन की बात की। एक मोहन चक्रधारी और दूसरे चरखाधारी। मतलब भगवान श्रीकृष्ण और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि देश में वर्षा और उत्सव चल रहा है।
पीएम मोदी ने कहा कि आज जब मैं आपसे बात करता हूं तो मेरा दो मोहन की ओर ध्यान जाता है एक सुदर्शनचक्रधारी मोहन और दूसरे चरखाधारी मोहन। उन्होंने कहा कि देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई गई। कोई कल्पना कर सकता है कि कैसा व्यक्तित्व होगा कि आज हजारों साल बाद भी हर उत्सव नयापन लेकर आता है, नई प्रेरणा और उर्जा लेकर आता है। हजारों साल पुराना जीवन ऐसा जो आज भी समस्याओं को दूर करने की प्रेरणा उदाहरण दे सकता है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा, हर कोई श्रीकृष्ण के जीवन में से समस्याओं का समाधान ढूंढ सकता है। वह कभी रास में रम जाते थे तो कभी गायों के बीच तो कभी ग्वालों के बीच, कभी खेलकूद करना तो कभी बांसुरी बजाना, विविधितताओं से भरा यह व्यक्तित्व समाजशक्ति को समर्पित, लोकशक्ति को समर्पित, मित्रता कैसी हो तो सुदामा वाली घटना कौन भूल सकता है। युद्धभूमि में सारथी का काम स्वीकार कर लेना, कभी चट्टान तो कभी पत्तल उठाना का काम यानी हर चीज में नयापन महसूस होता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सुदर्शन चक्रधारी मोहन ने उस समय की स्थितियों में हजारों साल पहले युद्ध को टालने के लिए अपनी बुद्धि का, अपने सामथ्र्य का उपयोग किया था और चरखाधारी मोहन ने स्वतंत्रता के लिए, मानवीय मूल्यों के जतन के लिए, व्यक्तित्व के मूल तत्व को सामथ्य दे इसके लिए आजादी के जंग को ऐसा रूप दिया ऐसा मोड़ दिया जो पूरे विश्व के लिए अजूबा है। निस्वार्थ सेवा का महत्व हो, ज्ञान का महत्व हो या फिर जीवन में तमाम उतार चढ़ाव के बीच मुस्कुराते हुए आगे बढऩे का महत्व हो यह हम श्रीकृष्ण के संदेश से सीख सकते हैं। इसलिए तो श्रीकृष्ण जगतगुरु कहे जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी के सोवा भाव को लेकर कहा, आज भारत एक और उत्सव की तैयारी में जुटा है, पूरी दुनिया में इसकी चर्चा है। मैं बात कर रहा हूं महात्मा गांधी की 150 जयंती। 2 अक्टूबर 1869, पोरबंदर में एक व्यक्ति नहीं एक युग का जन्म हुआ था जिसने मानव इतिहास को नया मोड़ दिया। महात्मा गांधी के जीवन से एक बात हमेशा जुड़ी रही वह है, सेवा, सेवा भाव। उनका पूरा जीवन देखें, साउथ अफ्रीका में उन लोगों की सेवा की जो नस्लीय हिंसा का शिकार थे। उस समय यह छोटी बात नहीं थी। उन्होंने उन किसानों की सेवा कि जिनके साथ चंपारण में भेदभाव किया जा रहा था। उन्होंने उन मिल मजदूरों की सेवा कि जिन्हें उचित मजदूरी नहीं दी जा रही थी। उन्होंने गरीब, बेसहारा, कमजोर और भूखे लोगों की सेवा को अपने जीवन का परम कर्तव्य माना। सत्य के साथ गांधी का जितना अटूट नाता रहा है, सेवा के साथ भी उनका उतना ही अनन्य, अटूट नाता रहा। जिस किसी को जब भी जहां जरूरत पड़ी, महात्मा गांधी सेवा के लिए मौजूद रहे। उन्होंने ना केवल सेवा पर बल दिया, बल्कि उसके साथ जुड़े आत्मसुख पर भी जोर दिया। सेवा शब्द की सार्थकता इसी अर्थ में है कि उसे आनंद के साथ किया जाए।
स्वच्छता ही सेवा अभियान 11 सितंबर से
प्रधानमंत्री ने कहा, पिछले कुछ सालों में हम 2 अक्टूबर से पहले लगभग 2 सप्ताह तक देशभर में स्वच्छता ही सेवा अभियान चलाते हैं। इस बार से ये 11 सितंबर से शुरू होगा। इस दौरान हम अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर श्रमदान के जरिए महात्मा गांधी को कर्यांजलि देंगे। घर हो या गलियां, चौक-चौराहे हो या नालियां, स्कूल, कॉलेज से लेकर सभी सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता का महाअभियान चलाना है। इस बार प्लास्टिक पर विशेष जोर देना है।

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