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 मध्य प्रदेश में लाए जा रहे चीतों को लेकर जागरूकता फैला रहा चंबल का पूर्व डकैत

 श्योपुर (  मध्य प्रदेश) । पूर्व डकैत रमेश सिकरवार, जिसका आतंक मध्य प्रदेश के चंबल के बीहड़ों में कभी रहता था, अब कुनो-पालपुर नेशनल पार्क (केपीएनपी) में अफ्रीका से बसाने के लिए लाए जा रहे चीतों के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के मिशन पर काम कर रहे हैं। सिकरवार (72) को मध्य प्रदेश के वन विभाग ने ‘‘ चीता मित्र '' के तौर पर नियुक्त किया है ताकि केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के तहत अफ्रीका से केपीएनपी में बसाने के लिए लाए जा रहे चीतों के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके। एक अंतर महाद्वीपीय स्थानांतरण परियोजना के हिस्से के रूप में आठ चीतों को 17 सितंबर को अफ्रीका के नामीबिया से राजस्थान के जयपुर लाया जाएगा और उसी दिन मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में कुनो-पालपुर नेशनल पार्क (केपीएनपी) में भेज दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में चीतों के विलुप्त होने के सात दशक बाद उन्हें दोबारा बसाने के कार्यक्रम के हिस्से के रूप में 17 सितंबर को अपने जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए आठ चीतों में से तीन चीतों को उद्यान के बाड़े में छोडेंगे। सिकरवार ने  कहा, ‘‘ वन विभाग के कर्मचारियों ने कुछ समय पहले मुझसे संपर्क किया और बताया कि समाज के कुछ प्रभावशाली लोगों को ‘‘ चीता मित्र'' के रूप में नामांकित किया जा रहा है। उन्होंने मुझसे चीतों के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के अभियान में साथ में आने का अनुरोध किया।'' उन्होंने कहा कि मुझे बताया गया कि शनिवार को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीते आ रहे हैं, इससे क्षेत्र के विकास में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘‘ चीता मित्र के रूप में एक टोपी और गमछा पहन रहा हूं और चीतों के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए लगातार लोगों से मिल रहा हूं।'' उन्होंने कहा, ‘‘ मैं लोगों को बता रहा हूं कि चीता कभी इंसान पर हमला नहीं करता और यदि वह जंगल से बाहर भी आ जाता है तो घबराने की जरुरत नहीं है और लोगों को इस बारे में अपने निकट के वन अधिकारियों को तुरंत सूचना देनी है।'' कराहल रेंज की वन रेंजर प्रेरणा दुबे ने कहा, "हमने सिकरवार सहित लगभग 450 'चीता मित्र' नियुक्त किए हैं। ये सभी ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे हैं और एक ठोस सूचना नेटवर्क विकसित किया है। वे लगातार लोगों में चीतों के बारे में जागरूकता बढ़ा रहे हैं और भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे।"
पूर्व दस्यु सरगना ने बताया, ‘‘ चाचा द्वारा पैतृक जमीन हड़पने के कारण मैं बीहड़ो में गया। मेरे पिता अपना हिस्सा चाचा से कभी ले नहीं सके। बड़ा होने पर मैंने अपने चाचा से हमारे हिस्से की जमीन देने का अनुरोध किया, लेकिन उसने न केवल इनकार कर दिया बल्कि मेरे खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी। इसके बाद मैंने बदला लेने के लिए अपने चाचा की हत्या कर दी और चंबल के बीहड़ों में चला गया।'' सिकरवार ने बताया कि वर्ष 1984 में जब उन्होंने आत्मसमर्पण किया तब उनके गिरोह में 32 डकैत थे। दस साल बीहड़ों में रहने के दौरान सिकरवार के खिलाफ 70-72 हत्या के मामले और 15 से 30 मामले अपहरण के दर्ज हुए। हालांकि, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कार्यकाल के दौरान गांधीवादी कार्यकर्ता पीवी राजगोपाल की अपील ने उनकी जिंदगी बदल दी और उन्होंने अपने गिरोह के सदस्यों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। सिकरवार ने कहा कि रिहा होने से पहले उन्होंने मुरैना जिले के सबलगढ़ जेल में 10 साल बिताए। सिकरवार ने कहा कि वह गांधीवादी मूल्यों का पालन करते रहेंगे और गरीबों के अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे। देश में अंतिम चीते की मृत्यु 1947 में कोरिया जिले में हुई थी, जो वर्तमान छत्तीसगढ़ में है। इस प्रजाति को 1952 में भारत से विलुप्त घोषित किया गया था।‘अफ्रीका चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया'' 2009 से चल रहा है जिसने हाल ही के कुछ सालों में गति पकड़ी है। भारत ने चीतों को लाने के लिए नामीबिया सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

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