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देश के 69 प्रतिशत परिवार वित्तीय असुरक्षा की चपेट मेंः सर्वेक्षण

नयी दिल्ली. वित्तीय समावेशन की दिशा में मजबूत प्रगति और वित्तीय सेवा उद्योग के विस्तार के बावजूद देश के करीब 69 प्रतिशत परिवार अपनी वित्तीय असुरक्षा और कमजोरी का सामना कर रहे हैं। एक सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट में यह दावा किया गया। आर्थिक खबरों के डिजिटल मंच 'मनी9' की तरफ से व्यक्तिगत वित्त के बारे में कराए एक सर्वेक्षण के आधार पर यह रिपोर्ट जारी की गई है। 'इंडियाज पर्सनल फाइनेंस पल्स' नाम के इस सर्वेक्षण में भारतीय परिवारों की आय, बचत, निवेश एवं खर्च से जुड़े बिंदुओं को समेटने की कोशिश की गई है। इस सर्वेक्षण के आधार पर परिवारों की आमदनी, खर्च एवं बचत के तौर-तरीकों को समझने के लिए देश की पहली नागरिक वित्तीय सुरक्षा रैंकिंग 'मनी9 वित्तीय सुरक्षा सूचकांक' भी जारी की गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, "देश में 4.2 सदस्यों वाले एक परिवार की औसत आय 23,000 रुपये प्रति माह है। वहीं 46 प्रतिशत से अधिक परिवारों की औसत आय 15,000 रुपये प्रति माह से भी कम है। इसका मतलब है कि ये परिवार आकांक्षी या निम्न आय समूह से ताल्लुक रखते हैं।" यह सर्वेक्षण रिपोर्ट कहती है कि देश के सिर्फ तीन प्रतिशत परिवारों का ही जीवन-स्तर विलासिता से भरपूर है और उनमें में अधिकतर परिवार उच्च आय वर्ग से संबंधित हैं। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि करीब 70 प्रतिशत परिवार बैंक जमा, बीमा, डाकघर बचत और सोने के रूप में अपनी वित्तीय बचत करते हैं। इनमें भी उनका सबसे ज्यादा जोर बैंकों एवं डाकघरों पर होता है और जीवन बीमा एवं सोना का स्थान उसके बाद आता है। भारतीय परिवारों की बचत का 64 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बैंक खातों में जमा के रूप में है जबकि सिर्फ 19 प्रतिशत परिवारों को ही बीमा की सुरक्षा हासिल है। मई और सितंबर के बीच कराए गए इस देशव्यापी सर्वेक्षण में 20 राज्यों के 31,510 परिवारों से बात की गई। इस दौरान शहरी इलाकों के अलावा ग्रामीण परिवारों से भी चर्चा की गई। मनी9 का संचालन करने वाले टीवी9 नेटवर्क के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी बरुण दास ने कहा, "यह सर्वेक्षण गुणवत्तापरक वित्तीय आंकड़ों की दिशा में एक बड़ी खाई को पाटने की कोशिश है। इसमें भारतीय परिवारों की व्यक्तिगत वित्तीय जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया गया है।" मनी9 के संपादक अंशुमान तिवारी ने कहा कि इस सर्वेक्षण से वित्तीय सुरक्षा के बारे में कुछ अनूठे एवं मूल्यवान आंकड़े सामने आने की उम्मीद है जिसका इस्तेमाल नीति-निर्माता नागरिकों के लिए नीतियां बनाने में कर सकते हैं।

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