जल्द ही ताम्रलिप्त बंदरगाह से चलेगी सदियों पुरानी तकनीक से बनी समुद्री नौका
दिहीमंडल (हावड़ा). ताम्रलिप्त या तामलुक के प्राचीन बंदरगाह से रूपनारायण नदी के दूसरी तरफ एक छोटा सा फुटबॉल का मैदान है जिसमें एक कारीगर समुद्र में खेने के लिए हाथ से नौका तैयार कर रहे हैं। पंचानन मंडल इस तरह की नाव बनाने वाले अंतिम जीवित शिल्पकार हैं। जानेमाने मानव विज्ञानी और समुद्र विज्ञानी स्वरूप भट्टाचार्य के लिए यह परियोजना एक सपने के सच होने जैसी है जिसे ब्रिटेन के ‘विलुप्त सामग्री ज्ञान कार्यक्रम' के तहत वित्तपोषित किया जा रहा है। उन्होंने ‘ एक न्यूज़ एजेंसी' से कहा, ‘‘किसी को सही-सही नहीं पता कि वी-आकार की ये नौका बनाने की तकनीक कब विकसित हुई जो यूरोप की वाइकिंग बोट जैसी दिखने वाली लेकिन उससे बिल्कुल अलग है। लेकिन हम जानते हैं कि खाड़ी क्षेत्र में लंबे समय से नौकाओं का इस्तेमाल होता रहा है। हालांकि अब कई दशकों से इस तरह की नौकाओं की जगह मोटर चालित नावों ने ले ली है और इनके निर्माण की तकनीक भी विलुप्त होती जा रही है।'' पंचानन मंडल (70) के नेतृत्व में कारीगरों के एक दल ने बड़ी संख्या में मछुआरों को आकर्षित किया है जिनके लिए प्राचीन नौका बनाने की कोशिश गर्व का विषय है। तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में विकसित ताम्रलिप्त बंदरगाह का उल्लेख यूनानी भूगोलशास्त्री टोलेमी और रोमन दार्शनिक प्लीनी की रचनाओं में मिलता है। इस बंदरगाह ने न केवल प्राचीन बंगाल के लिए बल्कि पूरे भारत में मौर्य साम्राज्य के लिए भी प्रवेश द्वार के रूप में कार्य किया। यह स्वाभाविक ही था कि स्थानीय लकड़ी के साथ-साथ जंगलों से प्राप्त सागौन का उपयोग करने वाला नाव-निर्माण उद्यम अति प्राचीनकाल से विकसित हुआ। हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुचंद्र घोष ने कहा, ‘‘हमारे पास बंगाल की खाड़ी में जहाज चलने के, ताम्रलिप्त बंदरगाह से श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में इनके चलने के साक्ष्य हैं।'' परियोजना में शामिल अन्य लोगों में एक्सेटर विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद् प्रोफेसर जॉन पी कूपर और हरियाणा के केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वसंत शिंदे शामिल हैं। भट्टाचार्य ने बताया कि मंडल और उनकी टीम द्वारा बनाई जा रही नाव साढ़े पैंतीस फुट लंबी और बीच में साढ़े नौ फुट चौड़ी है। हालांकि, प्राचीन काल में ऐसी 100 फुट तक की बड़ी नावों का निर्माण किया जा सकता था। अक्टूबर की शुरुआत में शुरू हुई नाव परियोजना के इस सप्ताह पूरा होने की उम्मीद है और एकल मस्तूल तथा चौकोर पाल वाली नौका का लोथल में राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय में ले जाने से पहले कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में रूपनारायण नदी में जलावतरण किया जा सकता है। स्थानीय प्रौद्योगिकी, जो अब तक जहाज-निर्माताओं द्वारा अपने बेटों को व्यावहारिक प्रशिक्षण के रूप में सौंपी जाती रही थी, उसकी रिकार्डिंग कर उसे डिजिटाइज़ किया जाएगा और इस ज्ञान को ब्रिटिश संग्रहालय में संरक्षित किया जाएगा ताकि भविष्य से सीखने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सके।
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