एनएमसी ने मेडिकल संकाय नियमों में ढील दी
नयी दिल्ली/ राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (एनएमसी) के नए नियमों के अनुसार सरकारी अस्पतालों में 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले गैर-शिक्षण विशेषज्ञों या परामर्शदाताओं को अब एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, जबकि दो वर्ष का अनुभव रखने वाले अनिवार्य ‘सीनियर रेजिडेंसी' के बिना सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य कर सकते हैं। एनएमसी के इस फैसले का उद्देश्य पात्र संकाय सदस्यों की संख्या बढ़ाना है। नए नियमों में यह प्रावधान भी है कि 220 से अधिक बिस्तरों वाले गैर-शिक्षण सरकारी अस्पतालों को अब शिक्षण संस्थान के रूप में नामित किया जा सकेगा। 2022 के पिछले नियमों के तहत गैर-शिक्षण चिकित्सकों को 330 बिस्तरों वाले उन गैर-शिक्षण अस्पतालों में दो साल के बाद सहायक प्रोफेसर बनने की अनुमति दी गई थी, जिन्हें मेडिकल कॉलेजों में परिवर्तित किया जा रहा था। हाल ही में अधिसूचित चिकित्सा संस्थान (संकाय की योग्यता) विनियम, 2025 में कहा गया है, "कम से कम 220 बिस्तरों वाले सरकारी अस्पताल में न्यूनतम दो वर्ष के अनुभव के साथ पीजी मेडिकल डिग्री रखने वाला एक गैर-शिक्षण परामर्शदाता या विशेषज्ञ या चिकित्सा अधिकारी सीनियर रेजिडेंट के रूप में अनुभव की आवश्यकता के बिना सहायक प्रोफेसर बनने के लिए पात्र होगा और उसे नियुक्ति के दो वर्ष में जैव चिकित्सा अनुसंधान में बुनियादी पाठ्यक्रम पूरा करना होगा।" आयोग ने कहा कि एनएमसी के तहत पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (पीजीएमईबी) द्वारा लाए गए इन नियमों का उद्देश्य पात्र संकाय सदस्यों की संख्या बढ़ाना और पूरे भारत में मेडिकल कॉलेजों में स्नातक (एमबीबीएस) और स्नातकोत्तर (एमडी/एमएस) सीटों के विस्तार की सुविधा प्रदान करना है। भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है। केंद्र ने अगले पांच वर्षों में 75,000 नयी मेडिकल सीटें सृजित करने की घोषणा की है। आयोग ने कहा, "हालांकि, एक महत्वपूर्ण बाधा चिकित्सा कार्यक्रमों को शुरू करने या विस्तार करने के लिए आवश्यक योग्य संकाय की उपलब्धता रही है। ये नए नियम सरकारी स्वास्थ्य प्रणालियों के अंदर मौजूदा मानव संसाधन क्षमता बढ़ाने और चिकित्सा शिक्षा के बुनियादी ढांचे को अनुकूलित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
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