गीता के श्लोक में आये 'तमेव शरणं गच्छ' पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से किसी साधक द्वारा पूछे प्रश्न का समाधान!!
• जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 412
साधक का प्रश्न ::: 'तमेव शरणं गच्छ' का थोड़ा मतलब समझा दीजिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: अरे मतलब तो वही है सबका चाहे 'मामेव' कहो चाहे 'तमेव'। अर्जुन से पहले उन्होंने कहा -
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात् परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्॥
(गीता 18-62)
उस परम ब्रह्म की शरण में जाओ। अर्जुन ने कहा परम ब्रह्म की? परम ब्रह्म से कॉन्टैक्ट कैसे हो सकता है? भगवान ने कहा फिर;
मामेकं शरणं व्रज।
(गीता 18-66)
मेरी शरण में आजा। अब तो समझ में आया। हाँ हाँ।
नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।
(गीता 18-73)
हाँ अब समझ में आ गया सीधी-सीधी बात करो। मेरी शरण में आ जा और उसकी शरण में जा। ऊपर क्या इशारा कर रहे हो ? उसको हम क्या जानें? कृपा चाहता है जो साधक उसके लिये ये सब श्लोक हैं।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।
(गीता 7-14)
शरणागति के बाद कृपा होगी। हम लोग कहते हैं पहले कृपा करो तो शरण में जायें। झगड़ा इतना सा है बस। और इस झगड़े में अनंत जन्म बीत गये। न भगवान् झुकने को तैयार हैं न जीव झुकने को तैयार है। जीव कहता है पहले कृपा करो। देखो बैंक में, स्टेशन पर टिकट लेता है कोई रुपया जमा करता है कोई, तो एक लाख रुपया उसने डाल दिया हाथ से अब वो वहाँ गिनता है अपना आराम से कुर्सी पर बैठकर। हम उसका विश्वास करते हैं कि ये ठीक गिनेगा और रसीद देगा। अगर हम विश्वास न करें कहें पहले रसीद दो और वो कहे पहले रुपया दो। तो कोई काम ही नहीं होगा। टिकट देने वाला कहे पहले पैसा दो और हम कहेंगे पहले टिकट दो, तुम रख लो रुपया और कह दो कब रुपया दिया है ? तो संसार में तो सब जगह हम पहले अर्पित करते हैं बाद में उसका लाभ मिलता है। और भगवान् के एरिया में पहले लाभ चाहते हैं।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3
★★★
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