मनुष्य शरीर बार-बार नहीं मिलता; माता के गर्भ से ही संसार के दुःखमय स्वरूप की झाँकी मिल जाती है!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 415
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ के 'सिद्धान्त माधुरी' का यह पद (77) है, जिसमें मनुष्य शरीर की महत्ता और इसके उद्देश्य का वर्णन है.....
मिलत नहिं नर तनु बारम्बार।
कबहुँक करि करुणा करुणाकर, दे नृदेह संसार।
उलटो टाँगि बाँधि मुख गर्भहिं, समझायेहु जग सार।
दीन ज्ञान जब कीन प्रतिज्ञा, भजिहौं नंदकुमार।
भूलि गयो सो दशा भई पुनि, ज्यों रहि गर्भ मझार।
यह 'कृपालु' नर तनु सुरदुर्लभ, सुमिरु श्याम सरकार।।
भावार्थ - यह मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता। दयामय भगवान् चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात् दया करके कभी मानव देह प्रदान करते हैैं। मानव देह देने के पूर्व ही संसार के वास्तविक स्वरूप का परिचय कराने के लिए गर्भ में उल्टा टाँग कर मुख तक बाँध देते है। जब गर्भ में बालक के लिए कष्ट असह्य हो जाता है तब उसे ज्ञान देते हैं और वह प्रतिज्ञा करता है कि मुझे गर्भ से बाहर निकाल दीजिये, मैं केवल आपका ही भजन करूँगा। जन्म के पश्चात् जो श्यामसुन्दर को भूल जाता है, उसकी वर्तमान जीवन में भी गर्भस्थ अवस्था के समान ही दयनीय दशा हो जाती है। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मानव देह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, इसीलिए सावधान हो कर श्यामसुन्दर का स्मरण करो।
• सन्दर्भ : 'प्रेम रस मदिरा', सिद्धान्त माधुरी, पद संख्या - 77
★★★
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