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 मनुष्य/साधक अपनी साधना में कैसे आगे बढ़े और अहंकार से बचने के लिये किस प्रकार का अभ्यास करे?
 • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 420

साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! साधना में शीघ्र आगे बढ़ने और अपराध से बचने के लिए क्या अभ्यास करना पड़ेगा?

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: मनुष्य को तत्त्वज्ञान पर ध्यान रखना चाहिये। सदा उसको मस्तिष्क में रखना चाहिये। जैसे 'मैं' को हम सदा रियलाइज़ करते हैं - मैं, मैं, मैं, मैं। चाहे जहाँ बैठें, लेटें, सोवें, सपना देंखें, गहरी नींद में सोवें, कहीं जाय - मैं हूँ , मैं हूँ। ऐसे ही भगवान् को सदा अपने साथ रियलाइज़ करें। तो फिर गड़बड़ करते समय ये याद आ जायेगा न कि वो देख रहे हैं। और उनकी कृपा माँग रहे हैं हम। कैसे मिलेगी कृपा फिर? संसार में ये जो जितने लोग आज मनुष्य बने हुये हैं बनावटी। ये क्यों? डर से। अगर ये पाप करेंगे तो पकड़े जायेंगे तो सजा मिलेगी, संसार में लोग बुरा कहेंगे, बदनाम होंगे। अन्दर-अन्दर तो पाप कर रहा है लेकिन बाहर नहीं करता डर के मारे। अगर हम भगवान् का डर मान लें हर समय तो फिर हमारी प्राइवेसी कहाँ रहेगी? जो हम प्राइवेट पाप करते हैं, मन में सोचा तो वो वर्क हो जायेगा क्योंकि वो अन्दर की चीज नोट करने वाला बैठा है। और हम गफ़लत में हैं। कोई आदमी चोरी करने जाय किसी के घर में और कोई छुप कर देख रहा है मालिक रिवॉल्वर ले के और चोरी करने वाला सोच रहा है कि हमें कोई नहीं देख रहा है, आराम से सामान उठाया और जब सामान लेकर चलने लगा तो उसने कहा हैण्डसअप। अरे! ये तो देख रहा है।

तो अगर भगवान् को हम सर्वत्र सर्वदा रियलाइज़ करें, अनुभव करें, मानें तो हमारे फिफ्टी पर्सेन्ट तो अपराध समाप्त हो जायें ऐसे ही, बिना साधना के। क्योंकि हम मनुष्य के डर से अपराध कम कर रहे हैं। तो भगवान् का डर मानेंगे तब तो और कम होंगे अपराध। और फिर मनुष्य तो ऐसा है कि अगर जान भी लेगा तो हम कह देंगे - ये झूठ बोलता है। लेकिन भगवान् तो सर्वान्तर्यामी है। वही तो दण्ड देगा हमको मरने के बाद। इसलिये वहाँ तो हम कुछ बोल नहीं सकते कि आप गप्प झोंक रहे हैं। मैंने कब पाप किया था?

तो भगवान् को, गुरु को, उनके वाक्यों को, उपदेशों को हम सदा साथ रखने का अभ्यास करें। ये अभ्यास से होगा। एकदम नहीं हो जायेगा। धीरे-धीरे अभ्यास करते-करते होता है। बच्चा पैदा होता है तो उसका एकदम माँ से प्यार नहीं हो जाता, बाप से प्यार नहीं हो जाता। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे आसक्ति होती है। उसी प्रकार संसार में जहाँ-जहाँ आसक्ति हुई है आप लोगों की सब धीरे-धीरे हुई है। स्वार्थ को जानकर के। और जहाँ स्वार्थ हानि समझते हैं हम, वहाँ से डिटैचमेन्ट हो जाता है तुरन्त। हाँ, ये हमारे काम की चीज नहीं। हम बाजार में जा रहे हैं मिठाई के शौकीन हैं गरम-गरम रसगुल्ला बन रहा है। हाँ हाँ! और आगे गये वहाँ माँस बिक रहा है। हूँ! हटा लिया आँख वहाँ से। हमको पसन्द नहीं है माँस खाना। जहाँ-जहाँ हम आगे बढ़ते गये, जो हमारे पसन्द की चीज है वहाँ हमारे मन को अच्छा लगा और जो हमारे पसन्द की चीज नहीं है उसमें हम विरक्त हो गये। ऐसे ही जैसे हम बाजार में घूमते रहते हैं, ऐसे ही इस संसार के बाजार में भी हम करते हैं। चले जा रहे हैं हमारा कोई प्रिय मिला, हलो! अरे कब आये तुम!! अन्दर खुशी हुई। एक दुश्मन जा रहा है, हूँ! जा रहा है बदमाश। अब सामने नहीं बोले वो बात अलग है लेकिन अपराध तो कर बैठे; क्योंकि क्रोध आया, फीलिंग हुई, ईर्ष्या हुई, तो आत्मा की शक्ति नष्ट हुई। 

तो अभ्यास करने से ही दीनता हो, नम्रता हो, भगवान् को साथ रखने का, गुरु को साथ रखने का, गुरु के उपदेश को साथ रखने का ये सब अभ्यास करना होगा। जितना अधिक अभ्यास होगा उतने ही अपराध से हम बचते जायेंगे। और ज्यों-ज्यों बचेंगे त्यों-त्यों अपराध अपने आप कम होते जायेंगे। जैसे - एक बच्चा चलना सीखता है तो पहले माँ की उँगली पकड़ता है। उससे जरा खड़ा होता है काँपते हुये, एक-दो कदम रखता है। फिर खाट-वाट पकड़ करके धीरे-धीरे चलता है। फिर बिना पकड़े धीरे-धीरे चलता है। लेकिन पचास बार गिरता है फिर खड़ा होता है। फिर चलने लगता है दौड़ने लगता है। ऐसे ही अभ्यास से जो चीज बड़ी लग रही है इस समय वो अभ्यास करने से कॉमन हो जाती है। साधारण हो जाती है। जिस तरह का अभ्यास बना लो। वही लड़का, वही लड़की नंगी पैदा हुई, नंगा पैदा हुआ, नंगा घूमता रहा, कुछ दिमाग में बीमारी नहीं। उसके दिमाग में बीमारी माँ-बाप ने डालना शुरू किया। ऐ! नंगा है, ऐ! नंगी है, कपड़ा पहन बेशरम। वो बेचारा बच्चा कहता है ये क्या बेशरम-बेशरम करते हैं। क्या है बेशरम-बेशरम। कपड़ा पहन लो। बिचारा पहनता है। फिर अभ्यास करता है धीरे-धीरे कि ऐसा पहनना चाहिये वरना बेशरम होता है वो। अभ्यास करते-करते इतना बेशरम हो गया फिर वो कि आदत पड़ गई वही। दिन भर स्त्रियाँ क्या करती है? बार-बार पल्लू को अपना इधर से उधर करती रहती हैं। आदत पड़ गई है। उनको पता नहीं कि मैं ऐसा कर रही हूँ। किसी से कहो, तुम हर मिनिट में ये क्या करती रहती हो? कहेगी, कुछ तो नहीं। और वो अपना डाले है पल्ला, वो नीचे आया फिर ऊपर, थोड़ी देर में फिर। अरे! क्या खास चीज है तुम्हारे अन्दर? अरे! वही शरीर तो है। उसको मालूम है कि इतना-इतना टाइम, इतना लेबर अनावश्यक है हमारा।

तो हमारी जितनी आदतें खराब हुई हैं ये सब अभ्यास से हुई हैं। इसलिये इनको ठीक करने में भी अभ्यास करना होगा। वो जो भी काम होगा अभ्यास से होगा। इसीलिये भगवान् ने अर्जुन से कहा;
 
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।
(गीता 6-35)

अर्जुन! ये कोई हमारे वश की बात नहीं है। हम कुछ नहीं कर सकते। हम तुमको उपाय बता सकते हैं। उपाय तुम करो। अभ्यास करो। और अभ्यास करना सबको मालूम है। ऐसा भी नहीं कि हाँ , कैसे अभ्यास किया जाय? सबको मालूम है। दिन में सौ बार बेटे ने बात मान ली हाँ खुशी हो गई, नहीं माना मूड ऑफ। बाप ने हमारी सुन ली, बड़ा अच्छा बाप है। नहीं मानी हमारी बात, क्या बाप मिला है! अरे मुँह पर न बोला भीतर से फीलिंग हो गई। बच नहीं सकता कोई। तो जहाँ स्वार्थ होता है वहाँ ममता अपने आप हो जाती है तो अगर स्वार्थ को रियलाइज़ करे कि गुरु और भगवान् ही हमारे हैं। उन्हीं से हमारा स्वार्थ सिद्ध होगा।

अनन्त बाप बना चुके। हर जन्म में बनाते हैं माँ, बाप, बेटा, बीबी, पति, सब बदलते जाते हैं हर जन्म में। कौन है , कुछ याद ही नहीं रहा कि पिछले जन्म में हमारा बाप कौन था, बीबी कौन थी? सब खतम। शरीर छोड़ा सब खतम। और जो बचे भी हैं वो भी कुछ दिन तक थोड़ा बहुत याद किया उसके बाद उनका भी खतम। किसी का बाप मरे, बेटा मरे, पति मरे, बीबी मरे कितना हल्ला मचाता है वो। दूसरे दिन हल्ला कम, तीसरे दिन और कम, चौथे दिन और कम, एक महीने बाद बिल्कुल खतम। फिर खाना खा रहा है, हँस रहा है, खेल रहा है। वो गया, मर गया, खतम हो गई बात। हाँ, कौन किसको याद करेगा? क्यों करेगा? स्वार्थ तक सब याद है। स्वार्थ ही नहीं हल होगा तो किस बात की ममता। तो अभ्यास करना होगा। अभ्यास से ही काम बनेगा।

• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 23

★★★
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- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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