क्यों चावल के बगैर पूरी नहीं होती कोई पूजा, क्या है इसका धार्मिक महत्व !
हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान चावल का इस्तेमाल जरूर होता है। चावल को अक्षत भी कहा जाता है। जब भी भगवान की पूजा की जाती है तो उन्हें रोली और चंदन लगाने के बाद अक्षत लगाया जाता है। पूजा सामग्री में अगर किसी चीज की कमी हो, तो उसे भी अक्षत से पूरा कर लिया जाता है। हवन सामग्री में भी कई बार अनाज के तौर पर अक्षत का इस्तेमाल कर लिया जाता है। वहीं किसी शुभ काम में भी अक्षत का इस्तेमाल जरूर होता है। ऐसे में मन में ये सवाल उठना लाजमी है कि धरती पर अनाज तो बहुत किस्म के हैं, फिर पूजा पाठ में अक्षत को ही सर्वश्रेष्ठ क्यों माना गया है। यहां जानिए अक्षत से जुड़ी खास बातें।
अक्षत का अर्थ समझें
अक्षत का भाव पूर्णता से जुड़ा हुआ है। अक्षत यानी जिसकी क्षति न हुई हो। जब भी हम पूजा के दौरान अक्षत चढ़ाते हैं तो परमेश्वर से अक्षत की तरह ही अपनी पूजा को क्षतिहीन यानी पूर्ण बनाने की प्रार्थना करते हैं। उनसे अपने जीवन की कमी को दूर करने और जीवन में पूर्णता लाने के लिए प्रार्थना करते हैं। इसलिए पूजा में हमेशा साबुत चावल ही चढ़ाए जाने चाहिए। अक्षत का सफेद रंग शांति को दर्शाता है।
ये भी है मान्यता
कहा जाता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी। उस समय ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए लोग उन्हें चावल समर्पित करते थे। इसके अलावा अन्न के रूप में चावल को सबसे शुद्ध माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद रहता है। इसलिए पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाते। जैसा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मुझे अर्पित किए बिना जो कोई अन्न और धन का प्रयोग करता है, वो अन्न और धन चोरी का माना जाता है। इस तरह अन्न के रूप में भगवान को चावल अर्पित किया जाता है। ये भी माना जाता है कि अन्न और हवन ईश्वर को संतुष्ट कर देता है। इससे हमारे पूर्वज भी तृप्त हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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