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बिना कर्ज लिए भी इंसान पर रहते हैं ये ऋण
वैसे तो इंसान कर्ज यानि ऋण से बचना चाहता है. लेकिन शास्त्रों के मुताबिक जन्म से ही इंसान पांच प्रकार के ऋण से युक्त हो जाता है. ये ऋण हैं- मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण और मनुष्य ऋण. कते हैं कि जो मनुष्य ऋणों को नहीं उतारता है, उसे कई प्रकार के दुख और संताप झेलने पड़ते हैं. आगे जानते हैं इस बारे में.
मातृ ऋण (Matri Rin)
शास्त्रों में माता का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा बताया गया है. मातृ ऋण में माता और मातृ पक्ष के सभी लोग जैसे-नाना, नानी, मामा-मामी, मौसा-मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं शामिल . ऐसे में मातृ पक्ष या माता के प्रति किसी प्रकार का अपशब्द बोलने या कष्ट देने से अनेक प्रकार का कष्ट झेलना पड़ता है. इतना ही नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में कलह-क्लेश होते रहते हैं. 
पितृ ऋण (Pitra Rin)
पिता की छत्रछाया में कोई इंसान पलता-बढ़ता है. पितृ ऋण में पितृ-पक्ष के लोग जैसे दादा-दादी, ताऊ, चाचा और इनके पहले की तीन पीढ़ीयों के लोग शामिल होते हैं. शास्त्रों के मुताबिक पितृ भक्त बनना हर इंसान का परम कर्तव्य है. इस धर्म का पालन नहीं करने पर पितृ दोष लगता है. जिससे जीवन में तमाम तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इतनी ही नहीं इस दोष के प्रभाव से जीवन में दरिद्रता, संतानहीनता, आर्थिक तंगी और शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है. 
देव ऋण (Dev Rin)
माता-पिता के आशीर्वाद के कारण ही गणेशजी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं. यही कारण है कि हमारे पूर्वज भी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले कुलदेवी या देवता की पूजा करते थे. इस नियम का पालन न करने वालों के देवी-देवता का श्राप लगता है. 
ऋषि ऋण (Rishi Rin)
मनुष्य का गोत्र किसी न किसी ऋषि से जुड़ा है. गोत्र में संबंधित ऋषि का नाम जुड़ा होता है. इसलिए पूजा-पाठ में ऋषि तर्पण का विधान है. ऐसे में ऋषि तर्पण नहीं करने वालों को इसका दोष लगता है. जिससे मांगलिक कार्यों में बाधा आती है और यह क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है.
मनुष्य ऋण (Manushya Rin)
माता-पिता के अलावा इंसान को समाज के लोगों से भी प्यार दुलार और सहयोग प्राप्त होता है. इसके अलावा इंसान जिस पशु का दूध पीता है, उसका कर्ज भी उतारना पड़ता है. साथ ही कई बार ऐसा भी होता है कि मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारी मदद करते हैं. ऐसे में इनके ऋण भी चुकाने पड़ते हैं. कहते हैं कि मनुष्य ऋण के कारण ही राजा दशरथ के परिवार को कष्ट झेलना पड़ा.

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