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 वैशाखी पूर्णिमा... दान और स्न्नान से मिलता है फल
- पं. प्रकाश उपाध्याय
प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि जगत के पालनकर्ता श्री हरि विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी को समर्पित होती है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार वैशाख पूर्णिमा सभी में श्रेष्ठ मानी गई है। वैशाख मास की पूर्णिमा को वैशाखी पूर्णिमा, पीपल पूर्णिमा या बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से पीपल के पौधे और वृक्ष की पूजा जल चढ़ाकर पूजा की जाती है और परिवार के मंगल, उन्नति, विकास और समृद्धि की कामना की जाती है। भगवान बुद्ध को इसी पावन तिथि के दिन बिहार के पवित्र तीर्थ स्थान बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। 
वैशाख पूर्णिमा के दिन हज़ारों श्रद्धालु पवित्र तीर्थ स्थलों में  स्नान,दान कर पुण्य अर्जित करते हैं। पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने  का विशेष महत्त्व माना गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार वैशाख पूर्णिमा का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि वैशाख मास को ब्रह्मा जी ने सब मासों में उत्तम सिद्ध किया है। अतः यह मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है।
पंचांग के अनुसार, वैशाख पूर्णिमा की तिथि की शुरुआत 22 मई को शाम 06 बजकर 47 मिनट पर होगी और वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 23 मई को शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा। ऐसे में वैशाख पूर्णिमा व्रत 23 मई को किया जाएगा।
क्या है पुष्करणी और उसकी महिमा
स्कन्द पुराण के अनुसार पूर्व काल में वैशाख मास की एकादशी तिथि को अमृत प्रकट हुआ, द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की, त्रयोदशी को श्रीविष्णु ने देवताओं को सुधापान कराया तथा चतुर्दशी को देवविरोधी दैत्यों का संहार किया और वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया। अतः देवताओं ने प्रसन्न होकर इन तीन तिथियों को वर दिया -'वैशाख मास की ये तीन शुभ तिथियां मनुष्य के समस्त पापों का नाश करने वाली तथा सब प्रकार के सुख प्रदान करने वाली हों'। वैशाख के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां 'पुष्करणी ' कही गयीं हैं,ये बड़ी पवित्र और शुभकारक हैं एवं सब पापों का क्षय करने वाली हैं।इनमें स्नान, प्रभु का ध्यान एवं दान-पुण्य करने से पूरे माह स्नान का फल मिल जाता है । महीने भर नियम निभाने में असमर्थ प्राणी यदि उक्त तीन दिन भी कामनाओं का संयम कर सके तो उतने से ही पूर्ण फल को पाकर भगवान विष्णु के धाम में आनंद का अनुभव करता है। जो मनुष्य वैशाख मास में अंतिम तीन दिन गीता का पाठ करता है,उसे प्रतिदिन अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है ऐसा शास्त्रों का कथन है।जो इन तीन दिनों में विष्णुसहस्त्र नाम का पाठ करता है उसे भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।        
धर्मराज की पूजा
वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन मृत्यु के देवता  धर्मराज के निमित्त भी व्रत रखने का विधान है। इस दिन जल से भरा हुआ कलश,छाता ,जूते,पंखा,सत्तू,पकवान आदि दान करना चाहिए । इस दिन किया गया दान गोदान के समान फल देने वाला होता  है और  ऐसा करने से धर्मराज प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।  

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