जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का आठवाँ भाग, दोहा संख्या 36 से 40
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 174
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 7 के दोहा संख्या 35 से आगे)
बीज चिरकाल में ही फल देगा बामा।
ऐसे ही रोते रहो सुने कभू श्यामा।।36।।
अर्थ ::: 'कालेन परिपच्यन्ते कृषि.....।' किसान अपने खेत में विविध प्रकार के अन्नों के दाने बीज रूप में डालता है। किन्तु फसल तैयार होने में समय की अपेक्षा होती है। इसी प्रकार साधन भक्ति भी धीरे धीरे ही परिपक्व होगी। अतएव निराशा से बचते हुये किशोरी जी की कृपा प्राप्ति हेतु आँसू बहाते रहो, एक दिन उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होगी।
मान लो पतित आपु कहँ कह बामा।
बन ठन के जनि जाओ ढिंग श्यामा।।37।।
अर्थ ::: यदि तुम स्वयं को पतित स्वीकार कर लो तो तुम्हारा काम बन जाय। बनना ठनना (पतित होते हुये भी स्वयं को पतित न मानना) अर्थात तुम जैसे हो वैसे ही उनकी शरण में आ जाओ।
मन में निराशा जनि लाओ कह बामा।
आशा रखो एक दिन पिघलेंगी श्यामा।।38।।
अर्थ ::: भूलकर भी अपने मन में निराशा को न आने दो। विश्वास रखो एक दिन किशोरी जी तुम्हें अवश्य अपनायेंगी।
मेरी थीं, मेरी हैं, मेरी रहेंगी भी श्यामा।
दृढ़ विश्वास रहे यह आठु यामा।।39।।
अर्थ ::: श्रीराधा सदैव से ही मेरी थीं, मेरी हैं एवं सदा मेरी रहेंगी। यह दृढ़ विश्वास निरंतर बना रहना चाहिये।
जहाँ रहो मन ते कहो कह बामा।
उर बैठीं तेरे कर्म लिखें श्यामा।।40।।
अर्थ ::: तू जहाँ भी रहे अपने मन में यह निश्चय रख कि श्रीराधा तेरे हृदय में बैठीं तेरे शुभाशुभ कर्मों का लेखा लिख रही हैं।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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