जो नित्यसिद्ध महापुरुष होते हैं, उनका तो कोई कर्म नहीं है फिर उनका कैसा, क्या प्रारब्ध होगा?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 195
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! जो नित्यसिद्ध महापुरुष होते हैं, उनका तो कोई कर्म नहीं है फिर उनका कैसा, क्या प्रारब्ध होगा?
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ, वो काहे को भोगेंगे, वो तो केवल लोक शिक्षा के लिये कार्य करते हैं। जितने कार्य भगवान के हैं, सबसे पहले भगवान ही को लो। नित्य सिद्ध के बाप तो वही हैं। तो वो भी सब प्रकार का कार्य करते हैं, दिखाने के लिये। देखो! मैं बीमार होने जा रहा हूँ, प्रारब्ध भोगने जा रहा हूँ। वो तो लीला क्षेत्र में आदर्श स्थापन के लिये करते हैं। भगवान जब मृत्युलोक से गोलोक गये, श्रीकृष्ण तो;
योगधारणयाऽऽग्नेय्यादग्ध्वा धामाविशत् स्वकम् । (भागवत)
भागवत में कहा गया है कि योग धारण किया और महापुंज को बुलाया और फिर 'अदग्ध्वा', जलाया नहीं शरीर को और 'धामाविशत् स्वकम्' और अपने धाम चले गये। सोलह हजार एक सौ आठ ब्याह किया। एक-एक स्त्री के दस-दस बच्चे हुये हैं और इतना वैराग्य भी दिखा दिया कि सबको आपस में लड़ाकर मरवा दिया। ये केवल संसार को बताने के लिये, देखो! मेरी इतनी बड़ी फैमिली है और मैं सदा मुस्कराता रहता हूँ। तुम लोगों के एक-दो-चार बच्चे, माँ-पिता होंगे फैमिली में, चार-छ: आदमी और उसी में चौबीस घंटे टेन्शन है। हमारी इतनी बड़ी फैमिली है और देखो, मुझे कोई फीलिंग नहीं होती। ऐसे ही तुम लोग भी अभ्यास करो। योगियों को दिया उपदेश कि देखो तुम लोग योग की अग्नि प्रकट करते हो, कोई कोई योगी तो शरीर जला देते हो और फिर जाते हो ब्रह्म में मिलने और मैंने योग अग्नि प्रकट किया लेकिन जलाया नहीं। उनको भी इशारा कर दिया। तो इस प्रकार संसार को शिक्षा देने के लिये नित्य सिद्ध महापुरुष भी अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। गौरांग महाप्रभु ने विवाह किया फिर स्त्री को त्याग करके संन्यासी हो गये और नित्यानंद से कहा कि तुम दो ब्याह कर लो। बड़ी-बड़ी खोपड़ी वाले भी रहे होंगे उस समय भी, उन्होंने यही कहा होगा, ये कुछ ढीला है इस बाबा का दिमाग। अपने आप तो बीवी को छोड़ देता है और अपने शिष्य नित्यानन्द से कहता है कि दो ब्याह कर लो। और एक इनका दास अस्सी वर्ष की बुढिय़ा से चावल माँगने गया, खाने के लिये भीख और वो भी अपने गुरु के लिये, गौरांग महाप्रभु लिये और उसको निकाल दिया कि तुम क्यों गये स्त्री से भिक्षा माँगने? तुम संन्यासी हो, सिर मुड़ाया है, दण्ड कमण्डल लिये हो, तुमको आज्ञा दी थी मैंने कि किसी स्त्री से भीख नहीं माँगना। और वो इतनी भक्त गौरांग महाप्रभु की थी वो अस्सी वर्ष की बुढिय़ा कि पूरे तौर पर वो भगवान मानती थी, संत नहीं मानती थी गौरांग महाप्रभु को, उससे भीख माँगा और निकाल दिया। उस समय भी हम लोग रहे होंगे और क्या कहा होगा? कुछ ढीला है और लोग कहते हैं कि ये भगवान का अवतार हैं। कोई नहीं समझ सकता नित्यसिद्ध के कार्य को, चाहे इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति कर लिया हो।
जार चित्ते कृष्ण प्रेमा करये उदय।
तार वाक्य क्रिया मुद्रा विज्ञे न बुझय।।
जिसने भगवत्प्राप्ति कर लिया उसके वाक्य, उसकी क्रिया, उसकी मुद्रा, बड़े-बड़े ज्ञानी, वो भी नहीं जान सकते। साधारण बुद्धि वाला क्या जानेगा?
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
00 सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
Leave A Comment