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भाग्य, प्रारब्ध अथवा किस्मत का क्या रहस्य है? क्या भाग्य काटा जा सकता है? श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर!!

 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 199


(भाग्य सम्बन्धी शंकाओं पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा तत्वचर्चा..)

भगवान हमारे अनंत पुण्य व अनंत पापों में से थोड़ा-थोड़ा लेकर हमारे किसी एक जन्म का प्रारब्ध तैयार करते हैं और मानव जीवन के रूप में हमें एक अवसर देते हैं ताकि हम अपने आनंद प्राप्ति के परम चरम लक्ष्य को पा लें।

प्रारब्ध सबको भोगना पड़ता है। भगवद् प्राप्ति के बाद जब कोई जीव महापुरुष बन जाता है, तब भगवान उसके तमाम पिछले जन्मों के एवं उस जन्म के भी समस्त पाप-पुण्यों को तो भस्म कर देते हैं, लेकिन वे उसके उस जीवन के शेष बचे हुए प्रारब्ध में कोई छेड़छाड़ नहीं करते।

इसका अभिप्राय यह है कि भगवान को पा चुके मुक्त आत्मा संतों/भक्तों को भी अपना उस जन्म का पूरा प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है।
उसमें इतना अंतर अवश्य आ जाता है कि अब वह नित्य आनंद में लीन रहने से किसी सुख-दुःख की फ़ीलिंग नहीं करता। लेकिन फिर भी एक्टिंग में उसे सब भोगना पड़ता है। किसी के प्रारब्ध को मिटाना भगवान के कानून में नहीं है।

वे लोग बहुत भोले हैं, जो यह समझते हैं कि अमुक देवी जी, अमुक बाबा जी अपनी कृपा से मेरे कष्ट को दूर कर देंगे। या मुझे धन, वैभव, पुत्र आदि दे देंगे। जो प्रारब्ध में लिखा होगा, वह नित्य भगवान को गालियाँ देने से भी अवश्य मिलेगा। जो प्रारब्ध में नहीं लिखा होगा, वह दिन-रात पूजा पाठ करने से भी न मिलेगा।

भगवान की भक्ति करने से संसारी सामान नहीं मिला करता, जीव के प्रारब्धजन्य दुःख दूर नहीं होते, बल्कि भक्ति से तो स्वयं भगवान की ही प्राप्ति हुआ करती है। यह बात अलग है कि कोई मूर्ख अपनी भक्ति से भगवान को पा लेने पर भी वरदान के रूप में उनसे उन्हीं को न माँगकर संसार ही माँग बैठे। यहाँ यह बात भी विचारणीय है कि जिसको भगवान की प्राप्ति हो चुकी, उसके लिए प्रारब्ध के सुख-दुःख खिलवाड़ मात्र रह जाते हैं।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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