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साधना भक्ति करके अंतःकरण शुद्ध कर लेना - बस इतने तक हमारा काम है, इसके आगे गुरु का काम है!!
 जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 257

(भूमिका ::: स्वरचित दोहा तथा उसकी व्याख्या में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साधक समुदाय को यह समझा रहे हैं कि साधना में किसका समर्पण करना है और क्या चीज भगवान से चाहनी है? भक्तिमार्गीय पथिक के लिये उनका यह महत्वपूर्ण मार्गदर्शन निम्नांकित पंक्तियों में है....)

मन ते स्मरण करु गोविन्द राधे।
ये ही भक्ति मन बुद्धि शुद्ध करा दे।।
(स्वरचित दोहा)

...ये क्रम है। सब वेदों, शास्त्रों, पुराणों का सारांश है। नम्बर एक, मन से हरि गुरु का स्मरण, ये साधना भक्ति कहलाती है। यही आप लोग कर रहे हैं। मन से, केवल वाणी से नहीं। वाणी भी साथ में रहे तो ठीक, न रहे तो भी ठीक, किन्तु मन से स्मरण हो, उसका नाम साधना भक्ति। इससे क्या होगा? मन-बुद्धि शुद्ध होंगे। अनादिकाल से मन-बुद्धि में माया का काम, क्रोध, लोभ, मोह ये संसारी मल भरा हुआ है। ये गोबर, कचरा, कूड़ा, मल, पाप-पुण्य, ये गड़बड़ हरि गुरु स्मरण से निकल जायेगी। धीरे धीरे निकलेगी क्योंकि अनन्त जन्मों का मैल है।

अगर आप कपड़े को रोज धोते हैं तो हलका सा साबुन लगा दें बस, और अगर एक हफ्ते में धोते हैं तो ज्यादा साबुन लगाना पड़ेगा, और अगर महीने भर में धोते हैं तो पहले गरम पानी में साबुन डालकर उसको भिगो दें फिर धुलाई करें। जितना मैल होगा, उतना परिश्रम होगा धोने में।

तो अनन्त जन्मों के हमारे पाप-पुण्य हैं, संसारी अटैचमेन्ट है, इसलिये उसके निकालने में भी अभ्यास करना होगा, स्मरण का। जगत का विस्मरण, हरि गुरु का स्मरण मन से। स्मरण मन करता है, इन्द्रियाँ (हाथ-पैर आदि) नहीं करतीं। तो इससे मन-बुद्धि शुद्ध होगी। इसी को अंतःकरण शुद्धि कहते हैं। जब ये शुद्ध हो जायेगा तो भगवान की एक पॉवर है, उसका नाम है स्वरुप शक्ति वो आपके अंतःकरण में अपने आप भगवान दे देंगे तो वो अंतःकरण को दिव्य बना देगी। दिव्य माने भगवान संबंधी। ये स्वर्ग वाला दिव्य नहीं, स्वर्ग की वस्तु को भी दिव्य शब्द से बोला जाता है। वो देवता हैं, दिव्य हैं, दिव् धातु से देवता शब्द बनता है लेकिन ये मैटिरियल (मायिक) दिव्य हैं। ये नहीं, भगवान संबंधी दिव्यता, अलौकिकता, चित् स्वरूप वाली, वैसा हो जायेगा आपका अंतःकरण, इन्द्रियाँ।

अब बर्तन तैयार हो गया। बर्तन, पात्र। बस इतना काम हम लोगों का है, बर्तन तैयार करवा देना। यानी मन से स्मरण कर मन को शुद्ध किया फिर भगवान ने उसको दिव्य बनाया अब उस बर्तन में दिव्य वस्तु रखी जा सकती है। वो दिव्य वस्तु क्या है? सबसे बड़ी दिव्य वस्तु है, भगवान का दिव्य प्रेम। भगवान की जो अंतरंग स्वरूप शक्ति है उसका सत् चित् आनंद, उसमें सत् से भी इम्पोर्टेन्ट चित्, चित् से महत्वपूर्ण आनंद ब्रम्ह। उस आनंद ब्रम्ह की एक सारभूत स्वरुपा शक्ति होती है ह्लादिनी। उस ह्लादिनी के भी सारभूत तत्व का नाम प्रेम है, जिसके अण्डर में भगवान हो जाते हैं। वो प्रेम है। हम अभी जो प्रेम कर रहे हैं भगवान से, गुरु से, ये तो हमारे मन का अटैचमेन्ट है। इससे मन शुद्ध होगा, ये प्रेम नहीं है। प्रेम तो मिलेगा कृपा से। वो कमाई से नहीं मिलता। कोई भी साधना ऐसी नहीं है करोड़ों कल्प कोई तप करे, अँगूठे के बल पर खड़े होकर तो भी प्रेम उसका मूल्य नहीं बन सकता। उससे प्रेम नहीं मिल सकता।

साधनौघेरनासंगैरलभ्या सुचिरादपि।
(भक्तिरसामृतसिन्धु)

करोड़ों साधनाओं से भी, अनासंग साधनाओं से भी, निष्काम साधनाओं से भी ये प्रेम अलभ्य है, उससे नहीं मिला करता। और,

हरिणा चाश्वदेयेति द्विधा सा स्यात् सुदुर्लभा।
(भक्तिरसामृतसिन्धु)

भगवान भी जल्दी में नहीं देते, उसको छुपा के रखते हैं क्योंकि उनको अण्डर में रहना पड़ेगा। तो यदि वो मुक्ति भुक्ति ले के छुट्टी दे दे तो भगवान कहते हैं, अच्छा हुआ बेवकूफ बन गया। लेकिन जो परम सयाने होते हैं, जिनका गुरु दिव्य प्रेम, निष्काम प्रेम प्राप्त कर चुका होता है, उसका पढ़ाया हुआ जो शिष्य होता है वो भगवान की वाक-चातुरी में नहीं आता। वो कहता है हमें कुछ नहीं चाहिये। निष्काम प्रेम, तुम्हारे लिये प्रेम माँग रहे हैं, अपने लिये नहीं, तुमको सुख देने के लिये।

तो वो दिव्य मन बुद्धि में दिव्य प्रेम स्वयं नहीं देते भगवान, वो गुरु ही दिव्य प्रेम देगा। यानी साधना का ज्ञान कराना नम्बर एक, साधना कराना नम्बर दो, अंतःकरण शुद्ध कराना, फिर अन्तःकरण दिव्य कराना - ये सब काम गुरु करता है और दिव्य प्रेम देना अन्तिम काम। बस यही प्रयोजन है, यही लक्ष्य है, अन्तिम। तो इस क्रम के द्वारा ये लक्ष्य प्राप्त होता है। ये थियरी मस्तिष्क में सदा रखे रहो, भूले न।

०० प्रवचनकर्त्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2016 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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