जैसे फूल पत्ते वृक्ष के सेवक हैं, ऐसे ही जीव ब्रम्ह श्रीकृष्ण का नित्य सेवक है - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज प्रदत्त तत्वज्ञान!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 274
(भूमिका - जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से यह समझने का प्रयास करें कि हमारे साध्य कौन हैं और हमारा वास्तविक कर्तव्य क्या है....)
(साधन-साध्य तत्वज्ञान)
...सभी विवेकी जीवों को यही निश्चय करना है कि हमारा लक्ष्य, हमारे सेव्य श्रीकृष्ण की सेवा ही है। वह सेवा भी उनकी इच्छानुसार हो। अपनी इच्छानुसार सेवा, सेवा नहीं है। वह तो अपने सुख वाली कही जायेगी। वह सेवाधिकार स्वाभाविक है। यथा,
दासभूतो हरेरेव नान्यस्यैव कदाचन। (चै.)
अर्थात समस्त जीवमात्र, अपने अंशी ब्रम्ह श्रीकृष्ण के नित्यदास हैं। यह दासत्व ही उनका स्व स्वरुप है। जिस प्रकार वृक्ष के अंश स्वरुप मूल, शाखा, उप शाखा, पत्रादि अपने अंशी वृक्ष की सेवा करते हैं अर्थात वृक्ष की जड़ें पृथिवी से तत्त्व निकाल कर वृक्ष को देती हैं। शाखा, पत्ते आदि भी सूर्यताप, वायु आदि के द्वारा सेवा करते हैं। इसी प्रकार जीवों को भी अपने अंशी श्रीकृष्ण की सेवा करनी है। यही ज्ञातव्य (जो जानना है) है, यही कर्तव्य है।
-- जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, अक्टूबर 2007 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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(3) Sanatan Vedic Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
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