'क्रोध' पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा संक्षिप्त प्रवचन; क्रोध नासमझी है!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 282
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'क्रोध' पर दिया गया संक्षिप्त प्रवचन...)
क्रोध आया कि सर्वनाश हुआ। बदतमीज कहने पर बदतमीज बन गये। आप इतने मूर्ख हैं कि एक मूर्ख ने 'मूर्ख' कहकर आपको मूर्ख बना दिया।
आपमें जो समझदारी थी वो छिन गई। देखिये संत और भगवान को लोग कितना भला-बुरा कहते हैं लेकिन वे उसको अंदर ही नहीं ले जाते। इसी का नाम समझदारी है। किसी में जो अच्छी चीज है उसको ले लीजिये और खराब चीज को छोड़ दीजिये। अंदर वाली गंदगी को निकाल दीजिये और बाहर वाली अच्छाई को ले लीजिये।
समझदार उसी को कहते हैं जो नासमझ की नासमझी से अपनी समझदारी को खो ना दे। नासमझ की नासमझी उस पर हावी न हो पाये। अगर समझदार ने भी नासमझी की, तो फिर वो भी नासमझ बन गया। किसी विद्वान को किसी ने 'मूर्ख' कह दिया और वे अगर उससे लड़ गये तो वे दोनों ही मूर्ख हैं। साथ में तमाशा देखने वाले भी मूर्ख हैं।
जो अंदर भरा होता है वही तो अच्छा भी लगता है और उसी को व्यक्ति स्वीकार करता है। इससे मालूम पड़ जाता है कि आपके अंदर क्या कूड़ा भरा है। अखबार पढ़ा तो पढ़ा कि कहाँ किसने चोरी की? कहाँ कत्ल हुआ? बस उसी को पढ़ा, अब उसी का चिंतन मनन और कीर्तन किया और वैसे ही बन गये।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० पुस्तक सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2005 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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