अगर हम बीमार हो गये और शरीर कुछ करने की स्थिति में न रहे तो इस स्थिति में निरन्तर साधना किस प्रकार होगी?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 286
(भूमिका - साधना का संबंध किससे है? शरीर से अथवा मन से? आइये इस प्रश्नोत्तरी में हम समझने का प्रयास करें। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत इन शब्दों पर गहराई से कुछ देर विचार करें...)
साधक का प्रश्न ::: शरीर न चले, बीमारी हो तो निरंतर साधना कैसे होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: साधना माने क्या? आराम। साधना करते हो तो शरीर को आराम मिलता है। साधना मन को ही करनी होती है। बीमार आदमी शरीर को महत्त्व देता है तो वह सोचता है - मैं मर जाऊँगा तो क्या होगा? इसलिए घबराता है लेकिन जब वह अपने को जीवात्मा मानेगा तो सोचेगा - श्यामसुंदर अभी नहीं मिले, यह सोच कर वह श्यामसुन्दर के लिए रोयेगा। किन्तु अगर नींद आ गयी तो इसका मतलब है कि हमने मानव शरीर की इम्पोर्टेंस नहीं समझी इसलिये आलस्य आ गया। साधना माने मन को साधना। साधना मन को ही करनी है। कैंसर का मरीज़ सोचता है - मैं मर जाऊँगा तो मेरी गृहस्थी का क्या होगा आदि। इसमें शरीर नहीं थक रहा है, मन का वर्क हो रहा है। जब कोई शरीर के महत्त्व को सोचने के स्थान पर सोचेगा - मेरा (जीवात्मा का) क्या होगा? श्यामसुंदर मुझे नहीं मिले!!! यह सोचकर आंसू बहाता रहेगा। अगर नींद आ गयी तो समझो इम्पोर्टेंस ही नहीं समझा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० पुस्तक सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 1
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
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