दीनता, कुसंग सहित युवा लड़के-लड़कियों के लिये सावधानी के संबंध में जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु द्वारा निर्देश!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 291
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त कुछ दिशा-निर्देश जो कि साधक-समुदाय सहित जनसाधारण के लिये भी पालनीय थे, कल के अंक में प्रकाशित किये गये थे। आज उसी के आगे का शेष भाग प्रकाशित किया जा रहा है। इन निर्देशों पर भली-भाँति विचार कर उन्हें व्यवहार में उतारने से अवश्य ही भौतिक जगत में भी लाभ प्राप्त होगा, आध्यात्मिक क्षेत्र में तो निश्चय लाभप्रद है ही। आइये इन बिन्दुओं को समझने का प्रयास करें....)
(1) दीनता लाना और अभिमान का त्याग :::
अहंकार से बचना और अपमान फील न करना भक्ति की आधारशिला है। तृण से अधिक दीन भाव रहे, वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु भाव रहे, सबको सम्मान दो, स्वयं सम्मान न चाहो। मूड ऑफ होने पर बोलो मत। अन्दर जितनी देर तक गुस्सा आये उसको विवेक से काटते रहो। सोचो इससे हमारे शरण्य को कष्ट होगा। अपनी गलती मान लो। अगर कोई भला बुरा कहता है तो सोचो इसने कौन सी नई बात कह दी। भगवत्प्राप्ति से पहले हममें सब अवगुण ही तो भरे पड़े हैं।
(2) सहनशीलता का गुण धारण करना :::
द्वेष करने वाले के प्रति भी द्वेष न करो। दूसरों की गलती के प्रति सहनशील बनो। गलती प्रत्येक व्यक्ति करता है, अतः सबसे नम्रता व दीनता का व्यवहार करो।
(3) युवा लड़के-लड़कियों के लिये सावधानी :::
युवा लड़के-लड़कियाँ ध्यान रखें, किसी की वाणी और व्यवहार के चक्कर में न आयें। कोई भी लड़की किसी भी लड़के को किसी प्रकार के शारीरिक कॉन्टैक्ट की फ्रीडम न दे। जैसे आप दाँत काढ़ रहे हैं, मज़ाक कर रहे हैं, कंधे पर हाथ रख दिया। यह तो हमारा भैया, चाचा का लड़का, ताऊ का लड़का है। तुरंत संभल जाओ। शरीर से दूर और आँखों से संभल कर व्यवहार करो।
(4) कुसंग से अपनी साधना का बचाव :::
कुसंग से बचो। भक्ति विरोधी हर ज्ञान, वस्तु, व्यक्ति कुसंग है। अपने गुरु, मार्ग, इष्ट को छोड़कर अन्य का संग कुसंग है।
(5) दूसरों के दोष न देखना, अपने दोषों का सुधार करना :::
जब गुरु कोई बात पूछे तो भोले बच्चे की भाँति सीधा सा उत्तर दिया करो। उनसे कुछ भी छिपाना सर्वनाश का कारण है। जो दोष बताया जाय तो निरन्तर उसका चिन्तन करो और कोशिश करो कि भविष्य में वह न होने पाये। दूसरे के दोष न देखो, परनिंदा न करो। दूसरों को सुधारने के लिये भी उनके दोष न देखो। लोगों को दूसरों की तो बड़ी भारी फिक्र है लेकिन हमारा क्या होगा, इसकी फिक्र क्यों नहीं करते हो?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, 2012 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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