मीमांसा-दर्शन में किसका वर्णन है? भक्तिमार्गीय साधक की साधना में मीमांसा-दर्शन पढ़ने से क्या कुछ लाभ हो सकता है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 292
साधक का प्रश्न ::: क्या मीमांसा दर्शन पढ़ने से साधना में कुछ लाभ होगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: दो प्रकार का धर्म होता है; एक का नाम अपर धर्म, एक का नाम पर धर्म। एक का नाम शारीरिक धर्म, एक का नाम आध्यात्मिक धर्म। हमारे पास दो चीजें है; एक 'मैं' आत्मा और एक शरीर। शरीर के लिए धारण करने वाली चीज का नाम शारीरिक धर्म, आत्मा के लिए धारण करने वाली चीज का नाम आध्यात्मिक धर्म; बस दो ही धर्म होता है। तीसरा हो ही नहीं सकता।
तो शारीरिक धर्म जो है उसका दूसरा नाम है वर्णाश्रम धर्म। वेदों में, स्मृतियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र - ये चार वर्ण हैं और ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास - ये चार आश्रम हैं। तो इन वर्ण और आश्रम के लिए, जो कायदे कानून वेद में बताये हैं, उसको धर्म कहते हैं, शारीरिक। और आत्मा के कल्याण के लिए जो धर्म बताया गया है, भगवान् को धारण करना, वो है आध्यात्मिक धर्म, पर धर्म, दिव्य धर्म, स्वाभाविक धर्म। जो बदल न सके। ये (शारीरिक) धर्म तो बदलता रहता है न। ब्राह्मण का दूसरा, क्षत्रिय का दूसरा, वैश्य का दूसरा, शूद्र का दूसरा धर्म, और एक में भी पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचारी के लिए एक धर्म बताया गया फिर बदल गया वो। पच्चीस साल तक तो बताया गया कि लड़की की फोटो नहीं देखना। और पच्चीस साल बाद कहा गया कि लड़की से ब्याह कर लो, बदल गया धर्म। फिर बाल बच्चे-कच्चे नाती-पोते हुए तो वानप्रस्थ आया, तो ये हुआ कि देखो तुम स्त्री-पति खाली दो, अलग हो जाओ जंगल चले जाओ, बच्चों को छोड़ दो। अब वो चला पच्चीस साल तो संन्यास आया, तो उन्हें कहा ये स्त्री-विस्त्री कुछ नहीं होती, स्त्री को छोड़ो, तुम पति को छोड़ो अलग हो जाओ दोनों। जाओ अलग-अलग साधना करो। यानी बदल रहा है धर्म। लेकिन आत्मा का धर्म नहीं बदलता। ब्रह्मचारी के लिए भी आज्ञा है - भगवान् की भक्ति करो, गृहस्थी के लिए भी - भगवान् की भक्ति करो, वानप्रस्थी के लिए भी। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र, चाण्डाल कोई हो;
पुरुष नपुंसक नारि नर, जीव चराचर कोय।
सबको भक्ति करना है। तो मीमांसा दर्शन जो है वो शारीरिक धर्म बताता है। यज्ञादिक करना और देवी देवताओं को खुश करना - स्वर्ग के लिए। वो नश्वर है, मूर्ख लोग उनके चक्कर में पड़ते हैं। मीमांसा दर्शन का शंकराचार्य ने खंडन किया और वेदान्त दर्शन का सबको सिद्धांत बताया कि आत्मा का धर्म मानो, भगवान् की भक्ति करो तो मोक्ष होगा। स्वर्ग मिल भी जाय अगर, तो वो चार दिन के लिये मिलेगा उसके बाद फिर कुत्ते, बिल्ली, गधे बनो। और फिर ये मीमांसा दर्शन में, कर्मकांड में यानी शारीरिक धर्म में बड़े कड़े-कड़े कानून है। जैसे यज्ञ करना है, हवन करते हैं आप लोग। ये पंडित लोग कराते हैं, इसमें छः नियम हैं।
पहला नियम 'देश' - कहाँ पर यज्ञ किया जाय? हर जगह नहीं हो सकता, वो भी शास्त्र के द्वारा इन्क्वायरी करो कहाँ कौन-सा स्थान यज्ञ के लायक है। ये देश। फिर 'काल' - किस समय यज्ञ हो? हर समय नहीं हो सकता। उसका मुहूर्त होता है और फिर 'कर्ता' - जो यज्ञ करने वाला है वो इतना बड़ा श्रद्धालु हो, और अंतःकरण इतना उसका पवित्र हो कि देवताओं को बुला सके, ये नंबर तीन। नंबर चार जिससे यज्ञ हो रहा है वो जौ, तिल वगैरह वो सही कमाई का हो। ऐसा नहीं कि हम कहीं से किसी तरह से कमा के ले आवें। वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कमाया हुआ जो पैसा है, उससे वो द्रव्य आवे इत्यादि इतने कड़े-कड़े नियम हैं, जो कलियुग में असंभव हैं। तो मीमांसा दर्शन को जानना कठिन, करना असंभव और फल स्वर्ग। इसलिए इसकी बात बिलकुल मत सोचना।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
Leave A Comment