साधना-भक्ति में लाभ के लिये सासंग और अनासंग भक्ति को समझना क्यों महत्वपूर्ण है, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु के श्रीमुख से जानें!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 301
(किस प्रकार की साधना से लाभ होगा, किससे नहीं, आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के इस प्रवचन-अंश से जानें, यह अंश उनके द्वारा प्रगटित प्रवचन-श्रृंखला 'दिव्य-स्वार्थ' से लिया गया है, जो उन्होंने 8-प्रवचनों में सन 1992 में दी थी, यह अंश 5-वें प्रवचन का है, जो उन्होंने 28 जनवरी 1992 में दी थी।)
...गौरांग महाप्रभु ने दो प्रकार की साधना बताया है। एक अनासंग साधना, एक सासंग साधना। तो अनासंग साधना माने आसंग रहित और सासंग साधना माने आसंग सहित और आसंग माने मन का चिन्तन भगवान का हो। मन का संग भगवान के रूपध्यान में हो, वो साधना सासंग साधना है।
अनासंग साधना के लिये उन्होंने कहा, करोड़ों कल्प किये जाओ इससे कुछ नहीं मिलेगा। अब ये अलग बात है कि कोई कहे साहब नथिंग से समथिंग अच्छा है, ठीक है, गधा-गधा कहने से राम-राम कहना अच्छा ही है, लेकिन यह साधना नहीं है। फिर आप जब बहुत दिन हो जाते हैं, तो कहते हैं, महाराज जी! हमको तो बहुत दिन हो गये कुछ लड्डू-पेड़ा मिला नहीं। जब साधना ही गलत हो रही है, तो माइलस्टोन तुम्हें कहाँ मिल जायेगा कि हम दस मील चले आये, बीस मील चले आये, अरे मार्ग से आगे बढ़ो। तुम तो एक ही जगह पर खड़े-खड़े मार्चिंग कर रहे हो।
तो सासंग साधना यानी स्मरण भक्ति सबसे प्रमुख है, और स्मरण भक्ति कहीं भी किसी भी पोजिशन में सदा की जा सकती है, ये भी रियायत दे दिया भगवान ने। लैट्रिन में बैठे हैं दस मिनिट बैठना है उसमें, रूपध्यान करो। फालतू टाइम न खराब करो। कहीं भी जाओ, ट्रेन में बैठे हैं, सफर कर रहे हैं, बारह घंटे ट्रेन में चलना है। हाँ यहाँ से वहाँ पहुँचने तक बीच में कोई काम खास है। अरे एक जगह चाय पीना है। कब? दो घंटे बाद पीयेंगे, अच्छा! अब दो घंटे तो कोई काम नहीं? नहीं। स्मरण करो। आँख खोलकर स्मरण करो, नहीं तुम्हारा सामान उठा ले जाय, कोई और कहो कृपालु ने कहा है, आँख बंद करके रूपध्यान करो। हाँ, यानी तुम्हारे मस्तिष्क में पहले यह खूब भरना चाहिये कि स्मरण भक्ति ही वास्तविक भक्ति है।
स्मरण भक्ति के बिना कोई भी साधना, साधना कैसे कहलायेगी, साधना का मतलब, हम दास वो स्वामी। जब स्वामी ही नहीं आया हमारे अंतःकरण में, तो हम भक्ति कहाँ कर रहे हैं? किसकी कर रहे हैं?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'दिव्य-स्वार्थ' प्रवचन-श्रृंखला
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
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