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  संसार में फैले भगवत्प्राप्ति के अनेक मार्गों में से वास्तविक मार्ग और अन्तःकरण शुद्धि के सही उपाय के विषय में श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समाधान!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 314

आज अनेक प्रकार के मार्ग, अनेक प्रकार के सम्प्रदाय चल रहे हैं। एक प्रश्न स्वाभाविक मस्तिष्क में उठता है, हमारे यहाँ शास्त्रों, वेदों में अनेक प्रकार के मत क्यों बन गये हैं? तथा इन विविध मतों में कौन सत्य है? कौन असत्य है?

एक बार उद्धव जी ने भी श्रीकृष्ण से यह प्रश्न किया था। बात यह है कि भगवान ने तो सर्वप्रथम वेदों के द्वारा केवल अपने निज भागवत धर्म का ही उपदेश किया था, किन्तु अनंतानंत जन्मों के संस्कारों के कारण तथा सत, रज, तम गुणों से युक्त बुद्धि होने के कारण एवं अनंत प्रकार की रुचि वैचित्र्य होने के कारण इस दिव्य वेद वाणी का साधकों ने अनेकानेक अर्थ कर डाला, जिसके परिणामस्वरूप अनेकानेक मत बन गये। उसमें कुछ सत्य भी हैं, कुछ असत्य भी हैं। कुछ मत तो ऐसे हैं जो कि शास्त्रों वेदों के भी विपरीत, दम्भीयों ने बीच में ही गढ़ लिया है। यह प्रश्न एक समुद्र मंथन के समान है।

कुछ शास्त्रकार धर्म को, कुछ यश को, कुछ सत्य को, कुछ शम दमादि को, कुछ यम नियमादि को, कुछ जप को, कुछ तप को, कुछ यज्ञ को, कुछ दान को, कुछ व्रत को, कुछ आचार को, कुछ योगादि को, इत्यादि विविध प्रकार के साधनों को कल्याण का साधन बताते हैं, किन्तु वास्तव में इन साधनों से वास्तविक कल्याण नहीं होता, क्योंकि इन साधनों के परिणामस्वरूप जो लोक मिलते हैं वे आदि-अंत वाले होते हैं। उनके परिणाम में दुःख ही दुःख होता है। वे अज्ञान से युक्त होते हैं। वहाँ भी अल्प एवं क्षणभंगुर ही सुख मिलता है तथा वे स्वर्गादि समस्त लोक, शोक से परिपूर्ण होते हैं। अतएव उसकी प्राप्ति, तत्वज्ञ पुरुष नहीं करता, एवं उसे भी इसी लोक के सदृश असत्य समझकर परित्याग कर देते हैं।

सत्य मार्ग यह है कि जीव, एकमात्र पूर्णतम पुरुषोत्तम आनंदकंद सच्चिदानंद श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में ही अपने आपको समर्पित कर दे, एवं उन्हीं के नाम, गुण, लीलादिकों का स्मरण करता हुआ रोमांच युक्त होकर, आनंद एवं वियोग के आँसू बहावे। अपने हृदय को द्रवीभूत कर दे तथा मोक्षपर्यन्त की समस्त इच्छाओं का सर्वथा त्याग कर दे। इस प्रकार बिना किये अन्तःकरण शुद्धि नहीं हो सकती। स्मरण रहे, सत्य एवं दया से युक्त धर्म एवं तपश्चर्या से युक्त विद्या भी भगवान की भक्ति से रहित जीव को पूर्णतः शुद्ध नहीं कर सकती।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, मार्च 2002 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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