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  हम पतित हैं और भगवान पतितपावन - फिर क्यों भगवान की हम पर कृपा नहीं हुई? जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी के श्रीमुख से!!
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 316

(भूमिका - भगवान पतितपावन हैं और पतितों का उद्धार करने का उनका स्वभाव और गुण भी है, फिर भी हम क्यों अब तक उनसे दूर हैं? अपनी किस कमी को हम दूर करें, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के इस प्रवचन-अंश में हम इसका उत्तर समझने की चेष्टा करें.....)

भगवान का एक नाम है - 'पतितपावन'। ये सबसे महत्वपूर्ण नाम है। क्योंकि अनन्त कोटि ब्रम्हाण्ड के समस्त जीव पतित हैं, पापात्मा हैं। अनन्त जन्मों में अनन्त पाप कर चुके हैं। और वर्तमान में भी कर रहे हैं।

अच्छा कर्म भी पाप है, बुरा कर्म भी पाप है, केवल भगवान और महापुरुष का चिंतन - बस ये ही सही है, बाकी सब पाप है क्योंकि बाकी सबसे कर्मों का बन्धन होता है। अच्छा कर्म करोगे, स्वर्ग मिलेगा, खराब कर्म करोगे, नरक मिलेगा। अच्छा बुरा दोनों करोगे तो मृत्युलोक मिलेगा। तीनों का परिणाम 84 लाख में घुमायेगा वो कर्म।

तो इस परिभाषा के अनुसार जितने क्षण हम भगवान और महापुरुष में मन को लगाते हैं उतनी देर ही केवल पाप से बचे रहते हैं। सोचिये ऐसा 24 घण्टे में कितनी देर करते हैं हम?

अनन्त पाप तो एक जन्म में हम कर चुके और फिर अनन्त जन्म हो चुके हैं, पापों की क्या गिनती है। लेकिन भगवान पतितपावन हैं, सब पाप भस्म कर देते हैं शरणागत का।

सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज।
(गीता 18-66)

जीव को पूर्ण शरणागत होना है। अनन्तानन्त जन्मों के अनन्तानन्त पापों से छुट्टी। पतितपावन नाम इसलिये महत्वपूर्ण है कि सब जीव पतित हैं अनन्त कोटि ब्रम्हाण्ड में, उसमें स्वर्ग भी है वहाँ के लोग भी सब पतित हैं, इन्द्र, वरुण, कुबेर, यमराज सब पतित हैं। आप लोग हजारों बार इन्द्र बन चुके हैं, स्वर्ग के सम्राट और फिर कुत्ते, बिल्ली, गधे बने और फिर मनुष्य बने। किन्तु ब्रह्मलोक तक माया का आधिपत्य है इसलिये ब्रह्मलोक तक सब जीव पाप करते हैं। कभी-कभी भगवान का स्मरण जब कभी कर लेते हैं उतने समय समझ लो वो बिना पाप के है, वो भी ठीक-ठीक समय स्मरण करें तो।

अनन्त पाप किये बैठे हैं, करोड़, दस करोड़ नहीं। अगर एक जन्म में कोई एक पाप करे तो भी अनन्त जन्म बीत चुके। अनन्त पाप किये बैठा है हर आदमी। 

हम पतित हैं और भगवान पतितपावन हैं - ये दोनों विश्वास दृढ़ हों तो काम बन जाये एक सैकेण्ड में, कोई देर नहीं लगेगी। लेकिन इन दोनों में कहीं न कहीं गड़बड़ है। या तो अपने को हम पतित नहीं मानते सेंट परसेन्ट और या तो ठाकुर जी के ऊपर विश्वास नहीं करते कि वो पतितपावन हैं।

हम अगर अपने को पतित मानते हैं, उसकी पहचान क्या है? आपको कोई कहे तुम कामी हो, तुम क्रोधी हो, तुम लोभी हो, तुम अहंकारी हो, तुम धूर्त हो, तुम 420 हो, तुम पाखण्डी हो - इन शब्दों का प्रयोग अगर कोई हमारे लिये करे और हमको फील (बुरा न लगे) न हो तो समझो कि आप अपने को पतित मानते हैं। 

किसी ने एक शब्द कहा, अपमानजनक लग जाता है अन्दर। 'हमको क्यों कहा ऐसा, क्यों कहा............'। अरे! तुम तो कहते हो मैं पतित हूँ, तुम तो अभी भगवान के आगे कहा रहे थे, 'मो सम कौन कुटिल खल कामी', तुमने कीर्तन किया, इसका गायन किया भगवान के सामने मन्दिर में, मेरे समान कोई पापी नहीं है, अगर कोई तुम्हें कह देता है तो तुम फील क्यों करते हो। तुम भगवान को झूठ बोलकर धोखा दे रहे थे।

तो हम अपने को पतित मानें सेंट परसेन्ट और भगवान को पतितपावन मानें सेंट परसेन्ट। ये दोनों बातें जब फिट हो जायँ, जब भी हो जायें, 2 घण्टे में, एक दिन में, एक महीने में, एक साल में, एक जन्म में, हजार जन्म में, तुरन्त पतितपावन श्रीकृष्ण हमें अपना लेंगे।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम भिक्षां देहि' (प्रवचन-पुस्तक)
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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