भगवान का ध्यान करते-करते जब संसारी रिश्तेदारों, संसारी वस्तुओं आदि का चिंतन मन में आने लगे, उस समय भगवान का ध्यान कैसे करें?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 322
साधक का प्रश्न ::: गुरु जी! जब हम भगवान् का ध्यान करते हैं तो कभी बिटिया, कभी बीबी, कभी माँ सामने आ जाती है तब भगवान् का ध्यान किस प्रकार करें?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: अच्छा तो ये बताओ तुम्हारी बिटिया की क्या चीज अच्छी लगती है तुमको? हमारी बिटिया की आँख बड़ी अच्छी लगती है महाराज जी, उसी का ध्यान हो जाता है जब भगवान् की आँख का ध्यान करते हैं। हाँ-हाँ बेटा घबराओ मत, देखो ऐसा करो जब बिटिया आवे सामने और उसकी आँख आवे, तो उसी आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो और खूब देखो बिटिया की आँख को। बिटिया की आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा करके और फिर बिटिया की आँख को देखो, बिटिया समझेगी कि हमसे प्यार कर रहे हैं पिताजी और तुम अपने श्यामसुन्दर से कर रहे हो। बीबी की आँख को देखो। जो तुमको अच्छा लगता है, जहाँ अधिक अटैचमेन्ट हो उससे घबराओ मत, परेशान न हो, झुँझलाओ मत, उसी जगह श्यामसुन्दर को खड़ा करो। ये अमुक बिल्डिंग बड़ी अच्छी लगती है उसी के ऊपर खड़ा कर दो श्यामसुन्दर को, त्रिभंगीलाल खड़े हैं मुरली बजाते हुये। जहाँ मन जाये वहीं पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो। जाने दो, रोको मत मन को कहीं, रोकने से नहीं रुकेगा और भागेगा। जैसे कुकर की गैस बढ़ जाती है ऐसे फिर तुम परेशान हो जाओगे। जहाँ मन जाये, जाने दो, उसी जगह पर श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो। ये गुरु ने बताया तरकीब। हाँ ये बढ़िया है तरकीब। अब तो जहाँ कहीं भी मन जायेगा वहाँ पर मनमोहन को खड़ा कर देगें तो हार जाएगा मन, थक जाएगा कि हर जगह ये श्यामसुन्दर का, नन्दपूत का भूत खड़ा कर देते हैं तो कहीं जाना ही बेकार है।
देखो! ये जो बन्दर को सिखाते हैं बाजीगर लोग तो ये पहले सौ फुट की रस्सी में बाँध देते हैं बन्दर को। उसी में उछलता है वो, और सौ फुट के बाहर जाना चाहता है, गले में रस्सी लगती है बार-बार, बार-बार, तो सोचता है चलो अब इसी के अंदर कूदेंगे। जब सौ फुट के अंदर ही रह जाता है तब पचास फुट की रस्सी कर देते हैं। इसी प्रकार दस फुट की, फिर पांच फुट की फिर जब एक फुट की रस्सी कर देता है तो बन्दर बैठ जाता है, बेकार है भागना। हाँ, ऐसे ही ये मन है, ये जहाँ भी जाये वहाँ पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' (भाग - 1)
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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