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 संसार में मिलने वाले सुख और दुःख क्या हैं? भगवान ने संसार को सुखालय बनाया है अथवा दुखालय?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 342

★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का 'सिद्धान्त-माधुरी' का यह 44-वाँ पद है, जिसमें श्री कृपालु जी महाराज संसार के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुये इसकी असारता प्रकट करते हुये अनंत आनंद के सिन्धु भगवान श्रीकृष्ण की चरण-शरण में आने का आग्रह कर रहे हैं ::::

छाँड़ु मन! सनक तनक सुनु बात।
छिन सुख पाव पाव छिन दुख पुनि, जोरि जगत सोँ नात।
इक वस्तुहिं इक सुखी, दुखी इक, एक उदास लखात।
पुनि कहु वा वस्तुहिँ सुख या दुख, या नहिँ दोउ जनात।
जो जेहि वस्तु मानि सुख जितनो, सोचत रह दिनरात।
सो तेहि वस्तु पाव सुख तितनो, वस्तुहिँ सुख पतियात।
पुनि तेहि विरह पाव दुख तितनोइ, निज भ्रमवश पिछतात।
कह 'कृपालु' जग ते उदास रहु, गहहु शरण बलभ्रात।।

भावार्थ - अरे मन! दुराग्रह छोड़ दे! जरा मेरी बात पर विचार तो कर। तू संसार से प्यार करके एक क्षण में तो सुखी हो जाता है एवं दूसरे ही क्षण दुःखी हो जाता है। जरा सोच तो, एक ही वस्तु से एक व्यक्ति सुखी होता है तो दूसरा दुःखी होता है एवं एक व्यक्ति उदासीन दिखाई देता है। अब तू ही बता उस वस्तु में सुख है या दुःख या दोनों ही नहीं हैं? अरे मन! जो जिस वस्तु में जितने सुख का बार-बार चिंतन करता  है उसको उस वस्तु से अपना ही माना हुआ सुख मिल जाता है और वह यह समझ बैठता है कि उसे उस वस्तु से ही वह सुख मिल रहा है। फिर जिस वस्तु से जिसको जितना सुख मिलता है उस वस्तु के वियोग में उसको उतना दुःख भी मिलता है। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं अरे मन! संसार में न सुख है न दुःख है। अतएव संसार से उदासीन होकर श्यामसुन्दर की शरण ग्रहण कर।

०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', सिद्धान्त माधुरी, पद संख्या 44
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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