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 कुंडली में कैसे बनता है ज्योतिषी बनने का योग, ऐसे समझें
ज्योतिष विज्ञान के प्रति मनुष्य की हमेशा से जिज्ञासा रही है। एक मनुष्य के जीवन में होने वाली या हो रही घटनाओं को समझने के लिए फलित का ज्ञानी होना बेहद जरुरी है। आज इस लेख में हम समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे एक व्यक्ति की कुंडली में उत्तम ज्योतिषी बनने का योग बनता है। साथ ही उन सभी सूत्रों को एक उदाहरण कुंडली से भी समझने की कोशिश करेंगे। एक व्यक्ति को ज्योतिष का मर्मज्ञ बनने के लिए कुंडली के कुछ भाव और ग्रहों का साथ मिलना बेहद जरुरी है। इस लेख में हम सबसे पहले उन्ही योगों की चर्चा करते है। 
उत्तम ज्योतिषी बनने के लिए लग्नेश का बलवान होना बेहद जरूरी है या फिर वो राजयोग बना रहा हो। लग्न मनुष्य का स्वभाव, उसकी आत्मा है और ऐसे उत्तम कार्य के लिए लग्न का बली होना जरूरी है। 
उत्तम ज्योतिषी बनने के लिए वाणी भाव यानी दूसरे भाव का संबंध गुरु, शुक्र और बुध से होना चाहिए। इस कार्य में वाणी की ही महत्ता है और वाणी भाव का स्वामी जब भी पंचमेश, अष्टमेश के साथ राजयोग बनाता है तब तब ऐसे व्यक्ति की वाणी अत्यंत प्रभावशाली हो जाती है। 
पंचम भाव पिछले जन्म को दर्शाता है वहीं आठवां भाव गूढ़ विद्या का कारक है। आठवें भाव में बैठा ग्रह दूसरे भाव यानी वाणी भाव को देखता है तो ऐसे में जब जब पंचम का स्वामी आठवें भाव के स्वामी के साथ उसी भाव में बैठ जाए और उसे शनि का साथ मिल जाए तो ऐसा जातक त्रिकालदर्शी होता है। 
बुध गणित है और गुरु ज्ञान है वही चंद्र मन का कारक है। बुध, गुरु और चंद्र पूर्ण बलवान होकर वाणी भाव, पंचम भाव या नवम भाव में बैठे तो ऐसा जातक निश्चित रूप से विद्वान होता है। 
फलित में शनि आठवें भाव का यानी रहस्य का कारक है। केतु अध्यात्म का कारक है। उत्तम वक्ता और ज्योतिषी बनने के लिए बलवान शनि और केतु का कुंडली में होना बेहद आवश्यक है। अक्सर गुरु शनि केतु का आपस में संबंध जातक को गूढ़ ज्ञानी बना देता है। 
बुध गुरु राशि परिवर्तन, गुरु शनि राशि परिवर्तन, आठवें भाव का राजयोग बनाकर केतु के साथ आना ये सब कुछ ऐसे योग है जिनके होने पर भी जातक उत्तम ज्योतिषी बनता है। 
लग्न और नवमांश कुंडली
अब हम इन सूत्रों को एक उदाहरण कुंडली से समझते है। यह कुंडली एक ऐसे विद्वान की है जिन्होंने अपने ज्ञान से जीवन भर लोगों का भला किया। अगर इस कुंडली को देखें तो पंचमेश सूर्य और अष्टमेश मंगल दोनों छठे भाव में बैठ गए हैं। मंगल आठवें भाव का स्वामी होकर विपरीत राजयोग बना रहा है। वहीं गुरु बारहवें भाव के स्वामी होकर विपरीत राजयोग बना रहा है। उन दोनों भावेश के साथ पंचम भाव के स्वामी का आना साफ़ संकेत है कि व्यक्ति पिछले जन्म के कर्मों के कारण प्रसिद्द और विद्वान होगा। 
लग्न में केतु, पंचम में बुध, बुध सूर्य का राशि परिवर्तन और गूढ़ विद्या का भाव यानी आठवें भाव के स्वामी का गुरु के साथ आना इस बात का संकेत है कि जातक उच्च कोटि का ज्ञानी होगा। अगर वाणी भाव के स्वामी जो देखें तो शुक्र सौम्य ग्रह चंद्र के साथ मूल त्रिकोण है और उस पर केतु का प्रभाव है। यही कारण है की उनकी वाणी कभी गलत साबित नहीं होती थी। 
इस कुंडली में अगर शनि को देखें तो वो वृश्चिक राशि में आठवें भाव में विराजमान है जिसका स्वामी राजयोग में है। सिर्फ शनि एक ऐसा ग्रह है जिसे  कारको भाव नाशाय का दोष नहीं लगता है।  आठवें भाव का कारक उसी भाव में बैठकर स्थिर राशि में बैठे बुध को अपनी दृष्टि दे रहे हैं। बुध शनि की राशि को अपनी दृष्टि दे रहे है।
इस योग के कारण जातक की गणित और गणना करने की क्षमता अद्भुत हो जाती है। ऐसे में वह ज्योतिष गणनाओं में कोई गलती नहीं करता है। इस कुंडली को देखने पर साफ़ पता चलता है की गुरु, शनि, दूसरे भाव, पंचम भाव, अष्टम भाव कहीं ना कहीं एक-दूसरे के प्रभाव में आकर जातक को प्रसिद्ध ज्योतिषी बना रहे हैं।

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