ब्रेकिंग न्यूज़

 भगवान के नाम, रूप में छोटे-बड़े का भेदभाव और महापुरुषों के प्रति भेद या विपरीत बुद्धि भयंकर बड़ा अपराध है!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 361

(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज आठवें कुसंग 'नामापराध' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)

★ आठवाँ कुसंग - 'नामापराध'

किसी महापुरुष या साधक का अपमान करना भी घोर कुसंग है। साधकगण बहुधा अपने आपको तथा अपने महापुरुष को ही सत्य समझते हैं, शेष साधकों एवं महापुरुषों में दुर्भावनापूर्ण निर्णय देते हैं। यह महान भूल है। इससे नामापराध हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप अपना महापुरुष तथा अपना इष्टदेव भी प्रसन्न न हो सकेगा; क्योंकि समस्त महापुरुष तथा भगवान परस्पर एक ही हैं। यदि किसी अन्य महापुरुष से तुम्हारी साधना के अनुकूल लाभ प्राप्त होता है तो उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिये। किन्तु, इसमें बड़ी सावधानी की आवश्यकता है। अन्यथा कहीं यदि महापुरुष पर दुर्भावना हो गई तो 'एक पैसा कमाया एक लाख गँवाया' वाली कहावत सिद्ध हो जाएगी।

भगवान के समस्त नाम, समस्त गुण, समस्त लीला, समस्त धाम एवं उनके समस्त भक्त परस्पर एक हैं। एक के प्रति भी दुर्भाव करना सभी के प्रति दुर्भाव करना है। इनमें कोई छोटा बड़ा नहीं है। सबमें सबका निवास है और नित्य निवास है, काल्पनिक नहीं। आपके नाम में आपका निवास नहीं है किन्तु भगवान के नाम में भगवान का निवास है और जहाँ उनका निवास है वहाँ उनके जन का निवास है। जहाँ उनके जन का निवास है वहाँ भगवान स्वयं रहते हैं इसलिये सबमें एकत्व है। इसलिये इनमें छोटा बड़ा समझना ही सबसे बड़ा कुसंग माना गया है। तो इसको नामापराध कहते हैं, किसी में भी भेद-बुद्धि न होने पाये नहीं तो नामापराध हो जायेगा।

नामापराध भी तीन ही प्रकार के होते हैं - एक भगवान के प्रति, दूसरा उनके नाम, रूप, लीला, गुण व धाम के प्रति और तीसरा उनके जन के प्रति। इनमें दो चैतन्य हैं भगवान और उनके जन। बाकी चैतन्य तो हैं, लेकिन चैतन्य दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। जैसे भगवान का नाम। अब नाम की क्या शकल होती है, उसके प्रति कोई क्या अपराध करेगा? लेकिन उसके प्रति भी यह अपराध हो जाता है। जैसे कोई 'गोपाल गोपाल' भज रहा है, आप कहते हैं क्या यह 'गोपाल गोपाल' 'गोविन्द गोविन्द' भज रहा है? 'राम राम' 'श्याम श्याम' क्यों नहीं कहता? हम 'राम राम' 'श्याम श्याम' कहते हैं। वो ठीक है और ये बेवकूफ है। ये नाम के प्रति अपराध हो गया। 

तुम्हारी रुचि जिस नाम में है, अपनी रुचि को बढ़ाओ, लेकिन दूसरे के नाम की बुराई न करो। जिस अवतार में तुम्हारी रुचि है उस अवतार में अपने प्यार को बढ़ाओ, लेकिन दूसरे अवतार की बुराई न करो। जिस गुरु में तुम्हारी रुचि है उसकी उपासना करो, लेकिन दूसरों की बुराई न करो। क्योंकि वे सब एक हैं। एक नाम से प्यार करो और दूसरे नाम की बुराई करो, एक गुरु से प्यार करो, फिर दूसरा गुरु, भी मान लो वह महापुरुष है, उसकी बुराई करो तो वह अपराध हो जायेगा। इसलिये अपने गुरु की उपासना करते हुये दूसरों से हमें उदासीन रहना है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज
०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english