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 परमार्थ के विषय में कुछ करने से पहले कौन सी महत्वपूर्ण बात समझ लेनी परमावश्यक है?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 371

(भूमिका - परमार्थ के विषय में विचार करते हुये हमें इस निष्कर्ष पर पहुँचकर कि हरि और गुरु ही हमारे वास्तविक हितैषी हैं; इसे दृढ़तापूर्वक बुद्धि में बिठा लेना है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत इस प्रवचन में इसी सत्य को सरलतम रूप में निरुपित किया गया है। आचार्यश्री ने यह प्रवचन 13 नवम्बर 2006 को भक्तिधाम मनगढ़ में दिया था....)

हरि गुरु सोइ तेरा गोविन्द राधे।
स्वार्थ सिद्ध होगा यह मन में बिठा दे।।
(स्वरचित दोहा)

परमार्थ के लाभ के लिये केवल एक बात बुद्धि में बैठाना है, बैठाना है, उठने न पावे ऐसा बैठाओ अर्थात सदा सर्वत्र ये ज्ञान बना रहे कि हमारा स्वार्थ हरि-गुरु से 'ही' सिद्ध होगा, 'भी' नहीं। हरि, गुरु से 'ही' हमारा स्वार्थ सिद्ध होगा। वेद कहता है;

न वा अरे पत्यु: कामाय पतिः प्रियो भवात्यात्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति। न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवात्यात्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति। आत्मा वा अरे द्रष्टव्य: श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैत्रेयी।
(बृहदारण्यकोपनिषद 4-5-6)

अर्थात संसार में सब जीव स्वार्थ से ही प्यार करते हैं। जहाँ उनकी बुद्धि ने बताया, यहाँ स्वार्थ सिद्ध होगा बस वहाँ प्यार हो गया। हो गया, करना नहीं पड़ता, प्रैक्टिस नहीं करना और वो भी जितनी मात्रा में स्वार्थ सिद्ध होने की बात बुद्धि में बैठी उतनी मात्रा का प्यार होगा, जैसे पड़ोसी से थोड़ा सा स्वार्थ सिद्ध होगा, तो थोड़ा सा प्यार होगा, नौकर से ज्यादा स्वार्थ सिद्ध होगा तो उससे अधिक प्यार होगा, दोस्त से और स्वार्थ सिद्ध होगा, बेटा-बेटी से और अधिक स्वार्थ सिद्ध होगा, स्त्री-पति से और अधिक स्वार्थ सिद्ध होगा, ऐसा संसार में हम अनुभव करते हैं और उसी के आधार पर हम प्यार करते हैं।

नम्बर दो; जिस सेकण्ड में उसी स्त्री, पति या बेटे किसी से भी हमारी बुद्धि में आया कि नहीं वो जो हमने सोचा था इससे सेन्ट परसेन्ट स्वार्थ सिद्ध होगा, गलत था। फिफ्टी परसेन्ट होगा, वो डाउन हो गया आपका प्यार। अरे! नहीं बिल्कुल नहीं होगा, ये तो हमारा दुश्मन है बस एबाउट टर्न हो गया। रोज डेली दिन भर आप लोग ये अनुभव करते हैं, हर जगह। यह बृहदारण्यकोपनिषद का बड़ा इम्पोर्टेन्ट मंत्र है ये। सब अपनी आत्मा से प्यार करते हैं, अपने स्वार्थ से प्यार करते हैं, जहाँ कहीं भी, ये बुद्धि ने बता दिया। सारा दारोमदार बुद्धि पर है और परिवर्तन करती रहती है बुद्धि। एक ही पति, एक ही बीबी, एक ही बेटे से दिन में दस बार बदलता रहता है बुद्धि का ज्ञान। उसी हिसाब से हमारा प्यार भी बदलता रहता है।

सर्व: स्वार्थम् समीहते।
(अध्यात्म रामायण)

जाते कछु निज स्वारथ होई। तापर ममता करै सब कोई।।
सुर नर मुनि सबकी यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।

ऐ तीन बजे रात को उठ करके हम आप लोगों की ये जो सेवा करते हैं, इसमें स्वार्थ है, ऐसे ही पागल थोड़े ही हैं हम। हमारा ये स्वार्थ है कि आप लोग भगवान की ओर चलें। चले, बहुत खुशी हुई, अब कम चले, खुशी कम हो गई। अब आप संसार में चले गये। अरे राम-राम! अच्छा-खासा चल रहा था, मर गया। अपना-अपना व्यापार है। जब किसी को व्यापार में अधिक लाभ होता है तो खुशी होती है और जब कभी कहता है कि आजकल ठण्डा है, ठण्डा है आजकल, बिजनैस डाउन है। ऐसे हमारा भी होता रहता है क्योंकि हमारे हाथ में तो है नहीं, ये तो आप लोगों के हाथ में है।

तो सब स्वार्थ से ही प्यार करते हैं। ये नियम है, ये अकाट्य नियम है। लेकिन हमारी बुद्धि में ये ज्ञान गलत बैठ गया है कि हम शरीर हैं। बस इसी से सब गड़बड़ हो गई। हम आत्मा हैं, हमारा स्वार्थ हरि-गुरु से ही पूरा होगा। नम्बर एक; सच तो ये है कि गुरु से ही हमारा सिद्ध होगा, हरि से तो जब होगा, तब होगा। प्रारम्भ में भी गुरु, मध्य में भी गुरु, अन्त में भी गुरु, वही हमारे साथ लेबर करेगा, परिश्रम करेगा और हमको वास्तविक स्वार्थ का ज्ञान कराने से लेकर वास्तविक स्वार्थ सिद्ध कराने तक साथ देगा। वही हमारा असली मित्र है, हितैषी है ये बात बुद्धि में बैठा दो और बैठी रहे, चौबीस घण्टे ऐसा बैठाओ यानी बार-बार सोचो, बार-बार सोचो, बार-बार। तो गड़बड़ी न करोगे, संसार में अटैचमेंट नहीं करोगे, तो बात बन जायेगी और दो मिनट को सोचा, बाकी टाइम में सोचा कि यहाँ स्वार्थ सिद्ध होगा जगत में, तो वो फिर दो मिनट का सोचना क्या काम देगा?

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'कृपालु भक्ति धारा' (भाग - 3, प्रवचन - 32)
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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