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  भक्त और भगवान दो अलग नहीं, एक तत्त्व है; भगवान ने अपनी अधिक प्रसन्नता किसकी भक्ति में बतलाई है?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 376

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा दिये गये असंख्य प्रवचन जो आज भी उनकी वाणी में उपलब्ध हैं, उनके द्वारा वेद, शास्त्र सम्मत साहित्य, ऋषि-मुनियों की परंपरा को पुनर्जीवन प्रदान कर रहा है। शास्त्रों, वेदों के गूढ़तम सिद्धान्तों को भी सही रुप में अत्यधिक सरल, सरस भाषा में प्रकट करके एवं उसे जनसाधारण तक पहुँचाकर उन्होंने विश्व का महान उपकार किया है। उन्होंने भारतीय वैदिक संस्कृति को सदा सदा के लिये गौरवान्वित कर दिया है एवं भारत जिन कारणों से विश्व गुरु के रुप में प्रतिष्ठित रहा है, उसके मूलाधार रुप में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने सनातन वैदिक धर्म की प्रतिष्ठापना की है। आइये 'सत्संग' तथा 'गुरु-महिमा' संबंधी महत्वपूर्ण तत्वज्ञान उनके साहित्य तथा प्रवचनों से प्राप्त करें...

★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)

बिनु सत्संग कछुक नहिं पाइय, पचि पचि मरिय हजार।
सो  सत्संग  'कृपालु'  जानिये,  श्रद्धा  बिनु  खिलवार।।

भावार्थ ::: महापुरुषों के संग के बिना, चाहे करोड़ों ही प्रयत्न क्यों न किये जायें, कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता और वह महापुरुषों का सत्संग भी श्रद्धा के बिना खिलवाड़ सा ही समझना चाहिये।

• संदर्भ ग्रन्थ ::: प्रेम रस मदिरा, सिद्धान्त माधुरी, पद - 95 से

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★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)

...भक्त और भगवान की दो गवर्मेन्ट नहीं हैं - ऐसा नहीं है कि भगवान की भक्ति आपने किया इस समय और गुरु की भक्ति नहीं किया तो गुरु का मूड ऑफ हो जाय। ऐसा नहीं है। गुरु की भक्ति आपने किया, भगवान प्रसन्न होंगे, भगवान की भक्ति किया, गुरु प्रसन्न होगा। वहाँ घपड़-सपड़ नहीं है, दुनियादारी की तरह से। ऐसा मत समझ लेना। भगवान हजार जगह अपने श्रीमुख से कहते हैं वेदों, शास्त्रों में - जो मेरे भक्त के भक्त हैं उन्होंने तो मेरी हजार गुणा भक्ति कर ली है, ये मैंने मान लिया और मैं उनके ऊपर वही कृपा करूँगा हजार गुना वाली। यानी मेरी भक्ति करने से मैं प्रसन्न ना होऊँगा, मैं भक्त की भक्ति से प्रसन्न हो जाऊँगा, ऐसा मेरा मत है - भगवान कहते हैं। इसलिये वहाँ तो झगड़ा नहीं, लेकिन प्रेमदान होगा गुरु के द्वारा ही, ये एक नियम है...

• सन्दर्भ पुस्तक ::: प्राणधन जीवन कुंज बिहारी , पृष्ठ संख्या 113

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ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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