हजारो रुपए किलो में बिकती है ये सब्जी
हरी सब्जियों की बात ही अलग होती है। हरी सब्जियां हमारी रोजमर्रा की जरूरतों का हिस्सा हैं। कुछ सब्जियां ऐसी होती हैं, जिनकी कीमती सुनकर आप हैरान कर जाएंगे। ऐसी ही एक सब्जी है गुच्छी, जो हजारों रूपए किलो बिकती है। यह फंफूदी परिवार का एक सदस्य है। इसे मशरुम भी कहते हैं। इस सब्जी को हिंदी भाषी राज्यों में स्पंज मशरूम के नाम से भी जाना जाता है।
गुच्छी पहाड़ी इलाकों में उगाई जाने वाली सब्जी है जिसे दुनिया की सबसे महंगी सब्जी माना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मार्कुला एस्क्यूलेंटा है। इसकी कीमत हमेशा आसमान छूती है। इसका निर्यात भी बड़ी मात्रा में किया जाता है।
भारत में गुच्छी की पैदावार हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और हिमालय के ऊंची पहाड़ी में की होती है। कीमत के लिहाज से इसमें पौष्टिता भी भरपूर होती है। इसमें विटामिन बी और डी के अलावा विटामिन सी और विटामिन के प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। माना जाता है कि इसके नियमित इस्तेमाल से दिल की बीमारी से बचा जा सकता है।
नेपाल में इसे गुच्छी च्याउ के नाम से जाना जाता है। गुच्छी एक प्रकार का प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला मशरूम है जिसका तना सफेद व हल्के पीले रंग का होता है। यह अंदर से खोखला होता है जबकि इसका ऊपरी हिस्सा हल्का भूरा सफेदीपन से सिलेटी भूरे रंग का बहुत ही नरम हिस्सा होता है। यह क्षारीय मिट्टी से लेकर अम्लीय मिट्टी में उगता है। गुच्छी को बसंत ऋतु की शुरूआत में जंगलों, बागों, आंगन, वाटिकाओं व हाल ही में जलकर नष्ट होने वाले क्षेत्रों में अपने आप ही उग आते हैं। इसकी अधिक कीमत होने की एक वजह ये भी है कि इसकी खेती नहीं की जा सकती। आमतौर पर मिलने वाले मशरुम की भारत में बड़ी मात्रा में खेती हो रही है, लेकिन गुच्छी के साथ ऐसा नहीं है। यह प्राकृतिक रूप से पैदा होती है। जंगलों में गुच्छी फरवरी से अप्रैल माह के बीच मिलती है। इस सब्जी को पहाड़ों पर लोग ढूंढकर इक_ा करते हैं और ठंड के मौसम में इसका इस्तेमाल करते हैं।
गुच्छी की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी है। पाकिस्तान, अमरीका, यूरोप, फ्रांस, इटली और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में कुल्लू की गुच्छी की खासी मांग है। इसकी उत्पत्ति के कारण इसे पूर्वोत्तर अमरीका में मे-मशरूम के नाम से भी जाना जाता है।
गुच्छी के फूलों या बीजकोश के गुच्छों की तरकारी बनती है। यह स्वाद में बेजोड़ और कई औषधियों गुणों से भरपूर है। भारत और नेपाल में स्थानीय भाषा में इसे गुच्छी, छतरी, टटमोर या डुंघरू कहा जाता है।
गुच्छी ऊंचे पहाड़ी इलाके के घने जंगलों में कुदरती रूप से पाई जाती है। जंगलों के अंधाधुंध कटान के कारण यह अब काफी कम मात्रा में मिलती है। चीन में इस मशरूम का इस्तेमाल सदियों से शारीरिक रोगों/क्षय को ठीक करने के लिए किया जा रहा है। गुच्छी मशरूम में 32.7 प्रतिशत प्रोटीन, 2 प्रतिशत फैट, 17.6 प्रतिशत फाइबर, 38 प्रतिशत कार्बोहायड्रेट पाया जाता है, इसीलिए यह काफी स्वास्थ्यवर्धक होता है। गुच्छी मशरूम से प्राप्त एक्सट्रैक्ट की तुलना डायक्लोफीनेक नामक आधुनिक सूजनरोधी दवा से की गई है। इसे भी सूजनरोधी प्रभावों से युक्त पाया गया है। इसके प्रायोगिक परिणाम ट्यूमर को बनने से रोकने और कीमोथेरेपी के रूप में प्रभावी हो सकते हैं। गठिया जैसी स्थितियों होने वाले सूजन को कम करने के लिए मोरेल मशरूम एक औषधीय एक रूप में काम करती है। ऐसा माना जाता है कि मोरेल मशरूम प्रोस्टेट व स्तन कैंसर की संभावना को कम कर सकता है।
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